दोहा

सुख संचरणी सैणला, दुख मेटण मुझ दीन।
चौमुख चावी चारणी, अळगा राख अरीन॥

छंद रोगकंद

पृथ्वी प्रगटाणिय आंगण आणिय, गौम सु गोरड़ियाळ गुणी।
बहु मान बढाणिय तूं सुरराणिय, आय हटाय अनीत दुणी।
चबदै वरषाणिय जीवन जाणिय, तात कु आंगण आप रया।
जुढियै धर नैर म खैर रखावण, मैर रहो कछराय मया।
जिय मैर रहो कछराय मया॥

जुढियै धर जावण रूण रखावण, आप लियो विशराम अठे।
कव लूण बधावण कोड करावण, तूटत वेद सुताण तठे।
थळ सोन थपावण तूं अपनावण, कोयर नीर अथाग किया।
जुढियै धर नैर म खैर रखावण, मैर रहो कछराय मया।
जिय मैर रहो कछराय मया॥

महमंद कुपाळिय कानन बाळिय, पाळ पगाळिय जोर जची।
भर चूड़ भुजाळिय शूल हथाळिय, भाळ तपाळिय रास रची।
कछराज कृपाळिय हाल हिमाळिय, गाळिय गात अगात भया।
जुड़िये धर नैर म खैर रखावण, मैर रहो कछराय मया।
जिय मैर रहो कछराय मया॥

धरणं अधपत्तिय आद सगत्तिय, नत्तिय भांण भ्रगंक खड़े।
सिणगार सजत्तिय रास रचत्तिय, पांव धरत्तिय धाक पड़े।
कबु कोप करत्तिय दुष्ट दळत्तिय, सत्तिय तूं अर तूं ज सिया।
जुढियै धर नैर म खैर रखावण, मैर रहो कछराय मया।
जिय मैर रहो कछराय मया॥

जग भाळण जोगण जाम अरोगण, भोगण पूज प्रसाद भले।
बरसैह घणोघण तेज तमोघण, फेर चहूं धर नीम फळे।
अळगा रख रोगण मेटत ओगण, गोगण की रखवाळ रया।
जुढियै धर नैर म खैर रखावण, मैर रहो कछराय मया।
जिय मैर रहो कछराय मया॥

भय को कर भंजन राखत, रंजन रोग प्रभंजन टाळ रही।
बगसो शुध वंजन मो मनरंजन, सैणल साय बहाय सही।
रखवाळ रहेविय कंदन केविय, देविय राख हमेश दया।
जुढियै धर नैर म खैर रखावण, मैर रहो कछराय मया।
जिय मैर रहो कछराय मया॥

चरणां रज चावण शीश निमावण, पावण भोम जठै पसरी।
शुभ दर्‌श करावण सोनथळी, मुझ जल्म मिला जुढिया नगरी।
कुलदीप भणै कछराय सदा, मुझ किंकर को बड़भाग किया।
जुढियै धर नैर म खैर रखावण, मैर रहो कछराय मया।
जिय मैर रहो कछराय मया॥

छप्पय

जग जरणी जगदंब, पग धरणी पूजूं सदा।
अघ हरणी अवलंब, आय हटा सब आपदा।
इतरी है अभिलाष, दास रखै मो सब दिनां।
भरो रिदै विच भास, बरषै नैण मात बिनां।
सुख सम्पत अरू सुमति सदा, समापो आद सगत्ती।
करंता भगत पर आप कृपा, भरंता ज भाव भगती॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां रचियोड़ी ,
  • सिरजक : सुआसेवक कुलदीप चारण
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