दूहौ

अवरल वांणी उर वसौ, मात चंडी महंमाय।
आखां देवल ओपमा, रूप गिरां सुरराय॥1॥

छंद रोमकन्द

सुरराय सदा अध आवण सांप्रत, पाय नमो पह रीत पणां।
रवराय देवी दुरगा वड राजत, घाय दईतांय खाय घणां।
सेवकां पर साय उपाय साधारण, जौन दबाय तुं आय जिनूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं।
जिय, देवल राजत रूप दिनूं॥1॥

कोयला चन्द्रकूंप अगंम कळाधर, कुंड अघोर में घोर क्रमै।
अकळा कळ पंथ अमोघ अपंपर, रूप सातादिप आय रमै।
महमा मंडळीक नवेखंड मंडण, खंडण दांणव खल्ल खनूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥2॥

हिंगळाज वीसांहथ चूड़ हळोहळ, भुज्ज भळोभळ साथ भळै।
ब्रहमंड चळोचळ यूं धर भूधर, दैत खळां दळ दुक्ख दळै।
निम नाच वळोवळ राच निरम्मळ, विम्मळ तेज सदा वरनूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥3॥

वीसां हथ वाळिय वीस भुजाळिय, काळिय केहर पीठ कसै।
डमकै डमराळिय देव डाढाळिय, वीर सचाळिय भैर वसै।
त्रिहुं लोक उजाळिय भैरव ताळिय, धाबळियाळिय धाय धिनूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥4॥

वर डाक वजाइय खेतल भाइय, हाक हवाइय धाक हलै।
ऊमां मिळ आइय चौसट चाइय, मांमड़ियाइय तेथ मिलै।
रमती सुरराइय रास रवाइय, तूं भलियाइय लोक तिनूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनू॥5॥

सुर थांन बैठी पांन-पांन सिरोमण, मांनसरां गिरमेर मिळी।
तीरथां पर पाप हरै तुंहि तारण, सिक्खर थांन सुंधै समळी।
कर क्रोड़ छपन्न चामंड कळाकळ, उस्सर भांज दबे अरणूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥6॥

पावै गिरनार आबू गिर तूं पत, गढ्ढ दांतै पै अंबा गरवी।
चाड़ोधर राय आसापुर चामंड, रोडळ रास उजास रवी।
किवळास रमै अधकी टिप केसर, वासर भास कळा वदनूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥7॥

पइयाळ त्रहूं पुर आरंभ पावन, चौसठ खेल अकास चड़ै।
नभ वास गजै वज त्रीवज नेवर, तारंग रास गिरां तिमड़ै।
भव पाल उपाय अजोनी त्रिभूवन, गुण तीनां विन पार गिनूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥8॥

अंग आद जुगाद अनाद अवच्चळ, साद किये माँ त्रिलोक सुणै।
सिवनाद वसै सथ आदि इन्द्रासुर, ता दुष्ट वेदन वाद तणै।
खट माद खांडाळ लियां अग्र खेतल, भांण दुवादस तेज भणूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥9॥

जुग धार जनंम के वार किया जस, पार प्रवाड़ाय कूण पुजै।
दरबार महीपत माड़ धरा धिन, वार अपूठिय धार विजै।
जद व्रन्न अठार दिया कर जादम, कायम वार जुगां करणूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥10॥

माड़वै अवतार लियौ महंमाइय, थांन खारोड़ै सुथांन थपै।
वड ब्रिद्द वीसोतर लाज वधारण, साबत राज सोढां समपै।
वीसौ कर रांण सरापियौ वीरम, अम्मरकोट अखी अपणूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥11॥

हरभंम हरै पर बोल करै बर, कांम काळूंझर बंद कियौ।
नर भीम नरेसुर गूडर के नर, देस परेक्कर थाप दियौ।
वरदांन देवी वर एम अखी कर, सौंप सरा धर दे सरणूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दनूं॥12॥

सकती सवळी थां नवेग्रह सावळ, पीड़ न चोर न आंट पड़ै।
दिन दिन्न वधै घर प्रग्घळ दौलत, चावळ, व्रिद्द सोभाग चड़ै।
नवनिद्ध दियै नित नित्त भवांनिय, थाट रिधी सिधि आप थणूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥13॥

धिन माल मुलक्क दियै धणियांणिय, गोरस गांम गिरास घणौ।
वरहास हुकम्म विद्या वसुधा वर, ता पर व्रिद्द सोभाग तणौ।
सुभ वास सुरंद विभौ सुख संपत, राजस पास सदा रहणूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभित, देवल राजत देव दिनूं॥4॥

सिमरन्न करूं भिनभिन्न देवी सुन, विग्घन हरन्न दिन्न वळै।
अन धन्न अखूट भंडार भरै अत, मांन सुं भोजन आंन मिळै।
दुरजन्न मिटै सुख दाळद्र दावन, मावन को न हूं और मनूं।
सकतां नवलाख झूळां बिच सोभत, देवल राजत देव दिनूं॥15॥


छप्पय (कळस)

देवल राज वड देव, सेव कियां सुक्ख उपज्जै।
नित नित राखौ नेम, भीड़ दाळद्र दुख भज्जै।
गंजै न सीमां गांम, नांम रहै नरखंड नरां।
दूध दही घर दांम, परिवार पुन्न वाधै पुरां।
भलिया सिधू होयजो भीर, ऊपर करजो नित आई।
देवला देव 'जुझियौ' दखै, स्याय करौ सुरराई॥1॥


स्रोत
  • पोथी : धरा सुरंगी धाट ,
  • सिरजक : जूंझारदान देथा मिठड़िया ,
  • प्रकाशक : जैतमालसिंह सोढा जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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