छंद त्रिवलय

श्रीनदीतटगच्छे पट्टे श्रीभावसेनस्य।
नयसाखाश्रृंगारी उपन्नो रयणकीर्तिया।।
उपनु रयणकीर्ति सोहि निम्मल चित्त।
हूउ विख्यात क्षिति यतिपवरो।।
जीतु जीतु रे मदन बलि सक्यु न वाहि।
छलि जिनवर धम्म वली धुरा-धरो।।
जाणि जाणि रे गोयम स्वामि तम नासि जेह नामि।
रह्यु उत्तम ठामि मडीयरण।।
छाड्यु छाड्यु रे दुर्जय क्रोध अभिनवु एह योध।
पंचेइंद्री कीधु रोध एकक्षण।।
उद्धरण तेह पाट नरयनी भाजी बाट।
मांडीला नवा अघाट विवह पार।।
आणि आणि रे जेन माण सर्वविद्या तणु जाण।
नरवरहि आण रग भार।।
दीसि दीसि रे अति झूझार हेलामाटि जीतु मार।
घड़ीयन लागी वार वरह गुरो।।
इणी परि अति सोहि भवीयण मन मोहि।
ध्यानहय आरोहि श्रीलक्ष्मसेन आणंद करो।।
कहि कहि रे संसार सार म जाणु तम्हे असार।
अत्थि अति असार भेद करी।।
पूंजु पूूंजु रे अरिहंत देव सुरनर करि सेव।
हवि मलाउ खेव भाव धरी।।
पालु पालु रे अहंसा धम्म मणूयनु लाधु जम्म।
म करु कुत्सित कम्म भव हवणे।।
तरु तरु रे उत्तम जन अवर म आणु मनि।
ध्याउ सर्वज्ञ धन लख्मसेन गुरु एम भणै।।
दीठि दीठि रे रयणी दीसि तत्वपद लही कीशि।
धरि आदेश शीशि तेह भलु।।
तरि तरि रे संसार कर तिजगुरु मूकिइए।
मोकळु कर दान भणी।।
छडि छडि रे रठड़ी बाल लेइ बुद्धि विशाल।
वाणीय अति रसाल लख्मसेन मुनिराउ तणी।।
श्रीरयणकीर्ति गुरु पट्टि तरणि सा उज्जळ तपै।
छड़ावी पाखंड धम्मि मारगि आरोपै।।
पाप ताप संताप मयण मछर भय टाळे।
क्षमा युक्त गुणराशि लोभ लीला करि राळे।।
बोलिज वाणि अम्मी अग्गली सावयजन घन चित्त हर।
श्री लख्मसेन मुनिवर सुगुरु सयल सघ कल्याण कर।।
सगुण जगुण भंडार गुणह करि जण मण रंजै।
उवसम हय वर चडवि मयण भडइं वाइ भंजै।।
रयणायर गंभीर धीर मंदिर जिम सोहै।
लख्मसेन गुरु पाटि एह भवीयण मन मोहै।।
दीपति तेज दणीयर सिसुमच्छती मणमाणहर।
जयवता चउ वय सधसु श्रीधर्मसेन मुनिवर पवर।।
पहिरवि सील सनाह तवह चरणु कडि कछीय।
क्षमा खड़ग करि धरवि गहीय भुज बलि जय लछी।।
काम कोह मद मोह लोह आवतु टाळि।
कट्ठ संघ मुनिराउ गछ इणी परि अजूयाळि।।
श्री लख्मसेन पट्टोधरण पाव पक छिप्पि नहीं।
जे नरह नरिंदे वंदीइ श्री भीमसेन मुनिवर सही।।
सुरगिरि सिरि को चडै पाउ करि अति बलवंतौ।
केवि रसायण नीर तीर पुहुतउय तरतौ।।
कोई आयासय माण हत्थ करि गहि कमतौ।
पट्ट संघ गुण परिलहिउ विह कोइ लहंतौ।।
श्री भीमसेन पट्टह धरण गछ सरोमणि कुल तिलौ।
जाणति सुजाणह जाण नर श्री सोमकीर्ति मुनिवर भलौ।।
पनरहसि अठार मास आषाढह जाणु।
अक्कवार पंचमी बहुल पंज्यह बखाणु।।
पुव्वा भद्द नक्षण श्री सोझीत्रिपुर वरि।
सत्यासीवर पाट तणु प्रबंध जिणि परि।।
जिनवर सुपास भवनि कीउ श्री सोमकीर्ति बहु भाव धीर।
जयवंतउ रवि तळि विस्तरु श्री शांतिनाथ सुपसाउ करि।।
स्रोत
  • पोथी : हथलिखी गुटका रचना ,
  • सिरजक : आचार्य सोमकीर्ति ,
  • प्रकाशक : दिगम्बर जैन मंदिर,बघेरवाल-नैणवा
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