आद पुरस जागिया अणक्ल, चेतन सक्ति सहेत निहचळ।

निंद्रा जोग निवारे नरहर, ईखियो दिसा दूण चै ईस्वर॥

आपो आप कोई दुजोयन, जळ पट सेख बिना पासे जन।

नाथ अनाथ स्याम बहोनामी, जाय पोढिया अंतरजामी॥

विस्वनाथ ना बड़े घपावण, माया त्रिगुण तणा फंद मंडण।

दीधो रचण त्रिभोयण दूवो, हरि हकार सबद जद हूवो॥

कीधो सिस्ट कहण चै कारण, नाभी हूत पंकज नारायण।

परम अछिया रूप उपायौ, उदित कमळ जळ बाहिर आयौ॥

कर असतूत ब्रह्य तप कीधो, दूवा सिस्ट रचण हर दीधो।

पोहोप प्रकास कियो पर पूरण, तेमि अचित्र मुख थियो ब्रह्यतण॥

ब्रह्य भ्रकुट उग्र तजे सविडव, भवथ्या प्रकट अजोनी संभव।

तमो सरूप अरुण रंग त्रिनयण, त्रिजट पंच मुख लेप पसम तण॥

पनंगहार गज तुछ पाटबर, कठमाळ कप्पाळ लिये कर।

वाहण व्रसभ पिनाक ससत्रबण, भूत दईत भण॥

कंठ जहर नीलै हेमाकर, सिंगी नाद जुगादी सुरेसुर।

परम रीझ दीधी विस पुत्ती, सिव वामा जगत मा सत्ती॥

सिव पै तखत सुरा सारा सिर, वास दियौ कैलास विसंभर।

परगहे सभ्रध अस्टसिध पास, करे रजा रास कैलास॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य सम्पदा ,
  • सिरजक : आईदान गाडण ,
  • संपादक : डॉ. सौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम, बीकानेर
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