अंबा आदि तरण आमासे, परम कंवर लखि हरख प्रकासे।

सुंदर चख मुख कर पद सोहै, मंजु रूप लख कंज विमोहै॥

अंग-अंग महिमा अधिकावै, सैज अनंत तेज दरसावै।

नार संभारै जतन निहारै, ऊपर राई लूण उतारै॥

नूर सूर राम वदन निहावै, आपै मात रतन धन आवै।

सहर गळी प्रत गळो सुहावै, गुळ वांटे त्रिय मंगळ गावै॥

संपज अजन सदन सुखसाजा, राम जनम जिम दसरथ राजा।

गुणियण द्वार वधाई गावै, प्रतदिन अन सोव्रन धन पावै॥

जगत सूत मागध बंदी जण, आसावंत किया नृप ऊरण।

जोगी जगत सन्यासी जेता, अन घृत अमिट लहै पुर एता॥

चकवत चित वाधै कुळ चावां, असहां खीज, रीझ उमरावां।

जाळंधर सुख कह्या जावै, ईखण उदै अमर मिळ आवै॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : वीरभाण रतनू ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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