वलती नारि पयंपइ वली, सूरिम सगलइ तनि ऊछली।

भलइं! भलइंं! साँमी स्यावासि, भवि-भवि हुं छुं थारी दासि॥

जिम बोलइ छइ तिम निरवहे, मत किणि वातइ जायइ ढहे।

लाज आणइ कुलि आपणइ, सांमी झुंबे साहसि घणइ॥

नेजइ घाउ करे नरनाथ, देखिसु हिवइ तुहारा हाथ।

खडग प्रहार खरा चालवे, आयुध अंगि घणा झालवे॥

पाछा पाउ रखे रणि दीइ, मरण तणउ भय माऽऽणे हीइ।

भलउ भवाडे खित्री-वंस, पुहवि करावे सबल प्रसंस॥

खलदल खेत्र थकी खेसवे, आयुध अंगइ राखे सवे।

सुभटाँ माहि वधारे सोह, वाहे विकट छछोहा लोह॥

नाम करे नव खंडे नाथ, वाहि सकइ तिम वाहे हाथ।

सुभट सहू कहीइं सारिखा, परघट लाभइ इम पारिखा॥

जीवण मरणि तुहारउ साथ, हुं नवि मुंकुं जीवन-नाथ!।

घणुं घणुं हिव कासुं कहुं! तेम करे जिम हुं गहगहुं॥

भिडतां भाजइ नासे मूउ, कायर कंपि हूउ जूजूउ।

एहवा वचन सुण्या मइ कांनि, तउ मुझ लाज हुसी असमांनि

कंत कहइ-संभलि, कामिनी! हिवइ सही तुं मुझ सामिनी।

बोल्या बोल भला तइं एह, निज कुलवट नी राखी रेह

अस्त्री आणि दिया हथियार, साझिउ सुभट तणउ सिणगार।

मिली गली माता-पग वंदि, असि चढि चालिउ बादिल भंदि॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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