मुझ खर दूखर त्रिसरा मेण। भाई वभीषंण कुंभेण॥
एक सीह नै पाखर अंगि। सुपनेखा नै रघु प्री संगि॥
कुदरसि क्रतंमि नारि तजि कंत। भार्या हूं तू जोगि निभ्रंत॥
विधना भूलौ नहीं विचार। सिरजी जोड़ी सिरजंण हार॥
चवै रांम सीता संगि चली। भलै सुत्रीय भौंडी ही भली॥
लायक तू लखमंणि तो लागि। भारी जोड़ हुई थां भागि॥
लखमंण कहै हूं सेवग लार। तू भौजाई रांम भ्रतार॥
हाथे ताली वंधव हसे। सीता ग्रंसण राकसी धसे॥
तांम लखमंण चोटी तास। निग्रहि वाढे कांन र न्रास॥
गात सजोर सहंस दस गज। रांम प्रताप थयो तिलरज॥
कुरळंती चाली दुःख कहै। रांमण रौ थांणौ जहां रहै॥
तिसरा खर दूखर दल तहां। जाय पुकारी भाई जहां॥