सतिरि सहस साहणवइ साहण,

गई अरदास पासि सुरताणह।

कणगरु कोष लीध हरि हिंदू,

तू रणमल्ल इक्क नह बंदू॥

पुण फुरमाण आण सुरताणइ(णी),

नहि रणमल्ल गणइ रणताणइ(णी)।

जिम हम्मीर वीर सिम्भरवइ,

तिम कमधज्ज मूंछ मुहि मुरवइ॥

चंचलि चड़ी चिहू दिसि चंपइ,

थर थर थाणदार उर कंपइ।

कमधज करि धरि लोह लहक्कइ,

बिबहर बुबंअ बुबंअ बक्कइ॥

निसि खंभाइच नयर उध्रकइ,

धूंधळि धूंस पड़इ धूलक्कइ।

प्रह पुक्कार पड़इ (पढ़इं) पट्टण तळि,

रे रणमल्ल धाड़ि जब संभळि॥

मुहुड़ा (सि) या मीर रहमाणी,

दाम हराम करइ सुरताणी।

माल हलाल खान, खिजमत्ती,

तु रणमल्ल इक्क नह खित्ति॥

इंक रणमल्ल राय सुणि आलमि,

रहिउ हुई हैराण खुंदाळम।

हेलां लाखबंद बुल्लावि,

लखि फुरमाण खान चल्लावि॥

हय गय कटक थाट उल्लट्टिय,

दहु दिसि पंडरवेस पलट्टिय।

निहुटि वाटि काढ गढ़ घल्लि,

करुपराण रैयत रणमल्लि॥

ईडर भणी भींच सुरताणी,

फूं फूं कार फिरई रहमानी।

मूंगल मेच्छ मुहइ मच्छर भरि,

हसि हुसियार हुया हल-हल करि॥

सत्रह सहस्त्र सेनाधिपति के शासन से सुलतान के पास प्रार्थना की गई कि-हिंदू (राजा) रणमल्ल ने धान्य का बहुत बड़ा राजकीय कोष लूट लिया है और यह अकेला रणमल्ल ही तुम्हारी सेवा करना स्वीकार नहीं करता है।

सुल्तान के पास पुनः आया कि रणमल्ल युध्द-भय की परवाह नहीं करता था तथा जिस प्रकार सांभरपति चौहान हम्मीर मूंछों पर ताव दिया करता था उसी प्रकार यह कमधज्ज वीर रणमल्ल मूंछें मरोड़ता है।

जब यह रणमल्ल घोड़े पर सवार होकर चारों दिशाओं को दबाता है। तब थानेदारों का हृदय थर्र-थर्र कांपने लगता है और यह कमधज वीर हाथ में तलवार लेकर झपटता है तो यवन बुबंअ (तोबा-तोबा) करने लगते है।

यह रणमल्ल सायंकाल में खंभाइच नगर में प्रविष्ट होकर हलचल उत्पन्न कर देता है। धुंधले समय में धूलका नामक नगर में (इसका) नगारे पर डंका पड़ता है और प्रातःकाल के समय जब रणमल्ल डाकू के आने का समाचार सुनाई देता है तब पाटण की तलहटी में पुकार मच जाती है।

इस रणमल्ल ने अनेक यवन वीरों को पराजित कर दिया है और सुलतान के धन को नष्ट कर रहा है। यह खान के माल-जायदाद को अपनी सम्पति समझ रहा है तथा वह एक ही पृथ्वी पर तुम्हारी सेवा स्वीकार नहीं कर रहा है।

समग्र जगत में एकमात्र राजा रणमल्ल को स्वतंत्र सुन कर बादशाह आश्चर्यचकित हो गया। उसने तत्काल कासिद को बुलवाया और उसे अपना फरमान देकर खान के पास भेजा।

फरमान में उल्लेख था कि रणमल्ल की रैयत पर दशों दिशाओं में यवन सैन्य, अश्वदल एवं हस्तीदल भेज कर आक्रमण करो और गढ़ का गुप्त मार्ग खोज कर उसे नष्ट कर दो।

इस प्रकार का आदेशपत्र प्राप्त करके सुल्तान के यवन वीर फुफकारते हुए ईडर को लक्ष्य बनाकर इधर-उधर घूमने लगे और कई मुग़ल जातीय यवन मात्सर्यभाव युक्त मुंह से हंसते हुए सावधान हुए तथा चलो-चलो करने लगे।

स्रोत
  • पोथी : रणमल्ल छंद ,
  • सिरजक : श्रीधर व्यास ,
  • संपादक : मूलचंद ‘प्राणेश’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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