सरसां संबल नइ पहिरणां, पाछां बान चलाव्यां घणां।

अबला विप्र दीइ आसीस, कान्हड जीवउ कोडि वरीस॥

सोमनाथ आराधइ कान्ह, नितु नित पंचामृति सनान।

पूजा तणा सोल उपचार, चंदन कुसम तिलक शृंगार॥

नितु नितु पूजा हुइ नवनवी, सहू जुहारइ भगति स्तवी।

नवे खंडि कीरति विस्तरी, कान्हडि वात असंभम करी॥

नरकपात ऊवेलइ जेउ, मोटा संकट छोडउ तेउ।

मूरति पांच एक लिंगथी, छठी तास जमलि को नथी॥

सोरठ भणी पधराव्यउ लिंग, एक भाग वागडि लोहसिंग।

आबू ऊपरि थाहर भली, मूरति एक तिहां मोकली॥

मूरति एक जालहुर मांहि, तिहां प्रासाद कराव्यु राइ।

देउल एक सइंवाडी मांहि, पांच ठामि शंकर पूजाइ॥

पांच लिंग जे पूजा करइ, गर्भवासि ते नवि अवतरइ।

पद्मनाभ पंडित इम कही, पहिला खंड समापति हूई॥

स्रोत
  • पोथी : कान्हड़दे प्रबन्ध ,
  • सिरजक : पद्मनाभ ,
  • संपादक : कान्तिलाल बलदेवराम व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : second
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