द्वीपायन मुनिवर जे सार, ते करसि नगरी सधार।

मद्य भाड जे नामि कही, तेह थकी बली बलसि सहि॥

पौरलोक सवि जळसि जिसि, बे बंधव निकलसुत्तिसि।

तह्यह सहोदर जराकुमार, तेहनि हाथि मरि मोरार॥

बार बरस पूरि जे तळि, कारण होसि ते तळि।

जिणवर वाणी अमीय समान, सुणीय कुमार तव चाल्यु रानि॥

कृष्ण द्वीपायन जे रसिराय, मुकलाव नियर खंड जाइ।

बार सबछर पूरा थाइ, नगर द्वारिका चुराइ॥

अे संसार असार कही, धन योवन ते थिरता नहीं।

कुटंब सरीर सहू पंपाळ, ममता छोड़ी धर्म्म संभाळ॥

पजून संबुनि भानकुमार, ते यादव कुल कहीय सार।

तीणे छोड्यु सवि परिवार, पंच महावय लीधु भार॥

कृष्ण नारि जे आठि कही, सजन राइ मोकळाविं सही।

अह्मु आदेस देउ हवि नाथ, राजमति नु लीधु साथ॥

वसु देव नंदन विलखु थइ, नमीय नेमि निज मंदिरगइ।

बार वसनी अवधि कही, दिन सवे पूगे आवी सही॥

अह्मु आदेस देउ हवि नाथ, राजमति नु लीधु साथ॥

वसु देव नंदन विलखु थइ, नमीय नेमि निज मंदिरगइ।

बार वसनी अवधि कही, दिन सवे पूगे आवी सही॥

तिणि अवसरि आव्यु रसिराय, लेईय ध्यान ते रहयु वनमांहि।

अनेक कुंमर ते यादव तणा, धनुस धरी इमवाग्या घणा॥

वन खंड परवत हीडिमाल, वाजिलूय तप्पा ततकाल।

जोता नीर लाभि किहा, अपेय थान दीठा ते तिहा॥

स्रोत
  • पोथी : संत कवि यशोधर गुटका पोथी ,
  • सिरजक : संत कवि यशोधर ,
  • प्रकाशक : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, नैणवा, बूंदी
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