रांम नांम का मिणका कीजै, सुरत तार मैं पोयर लीजै।

सांस उसास सिंवरीयै रांमा, तो बाबो सारै सबही कांमा॥

रांम नांम सूं वांणक विण्या, रांम नांम चूको मत ठाणा।

रांम नांम विन झूठी करणी, ज्यू बीज विंना सुधारी धरणी॥

माला मिणकां सूं क्या होई, यूं तो रांम पावो कोई।

सांचै मन सूं सिमरण कीजै, फूली सिर बाबै कूं दीजै॥

स्रोत
  • पोथी : मध्यकालीन कवयित्रियों की काव्य-साधना। ,
  • सिरजक : फूलीबाई ,
  • संपादक : उषा कंवर राठौड़ ,
  • प्रकाशक : महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध-केन्द्र, दुर्ग, जोधपुर।
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