राम रसायण भरि भरि पावै,
काल जाल को बंध छुड़ावै।
राम नाम रस अजरा होई,
ताकूं पीवै सूरा कोई॥
स्रोत
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पोथी : श्री रामस्नेही - संदेश संत सप्तक (मुक्तिविलास कृति से)
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सिरजक : रूपदास जी
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संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल
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प्रकाशक : श्री रामस्नेही- युवा -संत परिषद्, रामनिवास धाम, शाहपुरा ( भीलवाड़ा)
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- संस्करण : प्रथम