सुर जग्गे सुभ समय, भूम अन जुमे सुभावांष

रैण संभाळै राव, मिटे अटकाव वधावां॥

नव उच्छव नर नार, नवल श्रृंगार वसन्ने।

गीता में म्रग मास, कह्यौ मम रूप किसन्नै॥

अवतार अंस अगजीत ग्रह, वंस विखाद पळट्टियौ।

रितु एण उदय चहुवांन रै, सुत अभमाल प्रगट्टियौ॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : वीरभाण रतनू ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण