चाहूआण कुलि पुण्य अपार, पुण्यइ म्लेच्छ करिउ संहार।

पुण्यइ एक आरोगइ पान, पुण्यइ घरि सांपडइ निधान॥

पुण्यइ हुइ सुकुलीणी नारि, पुण्यइ तेजी बाझइ बारि।

पुण्यवंतनइ सहु को नमइ, पुण्यहीण नर भूला भमइ॥

पुण्यइ रोग आवइ अंगि, पुण्यइ पुरूष रमइ मनरंगि।

पुण्यइ अंगि आवइ रीस, पुण्यइ विप्र दीइ आसीस॥

पुण्यइ वाह्लां नही वियोग, पुण्यइ हुइ सजन संयोग।

पुण्यइ पहिरीइ वारू चीर, पुण्यइ हुइ फूटरां सरीर॥

पुण्यवंतनां दुसकृत टलइ, पुण्यवंतनइ चमार ढलइ।

पुण्यवंत सिरि छत्र धराइ, पुण्यवंत नवि पाला जाइ॥

पुण्यइ मयगल बाझइ बारि, पुण्यवंत भुज नावइ हारि।

पुण्यइ हुइ नित नवला रंग, पुण्यइ सुणीइ वेणिमृदंग॥

पुण्यइ सूईइ तलाई षाट, पुण्यइ कीरति बोलइ भाट।

पुण्यइ घरि नवि षूटइ धान, पुण्यइ हुइ पुत्रसंतान॥

पुण्यइ करी राय दीइ मान, पुण्यइ हुइ पाधरा प्रधान।

पुण्यइ धरीइ सोनासार, पुण्यइ पहिरीइ मोतीहार॥

पुण्यइ पामीइ विद्या वली, पुण्यइ हुइ कीरति ऊजली।

पुण्यवंत घरि त्रिणि वार अट्ठोत्तरसउ मंगलचार॥

पुण्यइ मुषि कूकउं नवि चवइ, पुण्यवंत पृथवी भोगवइ।

पुण्यइ पुण्य करइ आदरी, नितु दीवाली पुण्यइ करी॥

जे जे आण्या वानर वीर, पुण्यइ पाथर तरीया नीर।

पुण्यइ अणयुगतूं संभवइ, रामि राक्षस हणीया सवइ॥

कूरव कूड सीधउं काज, पुण्यइ पांडव पाम्या राज।

पुण्यप्रसंसा पुहुवि करी, पद्मनाभ पंडित विस्तरी॥

स्रोत
  • पोथी : कान्हड़दे प्रबन्ध ,
  • सिरजक : पद्मनाभ ,
  • संपादक : कान्तिलाल बलदेवराम व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : second
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