मावस व्रत की इह बड़ाई,

अंतकाल बैकुंठे हि जाई।

सूको काठ अग्नि ज्यूं बारै,

इह व्रत एसै अघ कूं जारै॥

स्रोत
  • पोथी : पोथो ग्रंथ ज्ञान (अमावस्या व्रत कथा से) ,
  • सिरजक : मयाराम ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम