अब कळदार लियौ अवतारा। सब कळजुग कौं देन सहारा।

तुरत रेल अरु तारा उतारा। एक करन सब को आचारा।

भज कलदारम् भज कलदारम्। कलदारम् भज मूढमते॥

बिन कळदार वृद्धि नहिं बंसा। पुनि या बिन नहिं होत प्रसंसा।

संकट हरन भजहु बेसंसा। अह नर नार जगत अवतंसा॥

भजन करै याको बड़ भागी। भजैं नहीं सो महा अभागी।

लेवन लगन परम पद लागी। रात दिवस रहिये अनुरागी॥

भाई तुझे बताऊं भेवा। साचे तन मन करियो सेवा।

मौज करोगे मिलहैं मेवा। दोसत देख बोलता देवा॥

कळदार पुरष अविनासी। पुन काटत यह जम की पढ़ासी।

क्यूं जाइये फिर मथुरा कासी। याही के बस वहां उपासी॥

जोगी जग में जोवत जत्ती। साध सेवड़े सोधत सत्ती।

ग्यांनी गिनत इसी कूं गत्ती। भगवत यही यही भगवत्ती॥

चेले गुरु चलते इक चीले। हैं कळदार बटोरण हीले।

परजा कों हाकम सब पीले। बस कोल्हू कांनून बसीले॥

मित्र पिता को किसकी माता। भो सुत बनिता किसके भ्राता।

जग सब दीखत आता जाता। सबका मन इस मांहि समाता॥

जब कळदार पास हय जावै। दीन होय नहिं दांत दिखावै।

चीनी चावळ घी चलि आवै। आप अरोग अनंद उडावै॥

ऊमर यार जमाना ऐसा। कह परबार निभेगा कैसा।

पास नहीं जब होवै पैसा। जग में जीना मरने जैसा॥

यही रुपैया है अनदाता। स्वारथ परमारथ सुख साता।

दुनियां मांहि चार फलदाता। विश्वंभर विश्वेस विधाता॥

कहु विंजन आराम विकसाया। सुभ पट भूखन छंद सुहाया।

द्वेष प्रीति निज हित दरसाया। ब्रह्म यहैं याके बस माया॥

सेवक को सेवक यह स्वामी। जग सबको है अंतरजामी।

सोलह कला सम्पूर्ण सकामी। निकट निवास करहु घणनामी॥

धन बिन बुधि बल धूर धमासा। निसफल हैं सास उसासा।

मिलि दसमासा बारह मासा। तेरे बिन जग करत तमासा॥

करिये कृपा अहो अविकारा। अब नहिं जाऊं लें उधारा।

सब तेरे तैं होत सुधारा। झल्लरि ज्यूं करतो झनकारा॥

बहु बिवेक वित होवहिं बंदा। करहिं दान आनँद के कंदा।

छबि धरि रच्यो षोडशी छंदा। ऊमर के मन भयो अनंदा॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय
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