हीरै जैसा कंकर औरै,

टिकै नहीं जहं कसनी ठौरै।

वाको खरच्ये खलक अघावै,

वे बहु मोल सूं पहली आवै॥

स्रोत
  • पोथी : गुणगंजनामा ,
  • सिरजक : जगन्नाथदास ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : श्री दादू साहित्य- शोध – संस्थान ,
  • संस्करण : प्रथम