बादल राउतनी कथा, सुणतां नावइ निज घटि व्यथा।

रोग सोग दुख दोहग टलइ, मनना सयल मनोरथ फलइ॥

पूनिम गछि गिरूआ गणधार, देवतिलक सूरीसर सार।

न्यायतिलक सूरीसर तास, प्रतपइ पाटइं बुद्धिनिवास॥

पदमराज वाचक परधांन, पुहवी परगट बुद्धिनिधांन।

तास सीस सेवक इम भणइ, हेमरतन मनि हरखइ घणइ॥

संवत सोलह सइं पणयाल, श्रावण सुदि पंचमि सुविसाल।

पुहवी पीठि घणुं परगडी, सबल पुरी सोहइ सादडी॥

पृथवी परघट राण प्रताप, प्रतपइ दिन दिन अधिक प्रताप।

तस मंत्रीसर बुद्धिनिधांन, कावेड्या कुलतिलक निधांन॥

सांमि धरमि धुरि भामुं साह, वयरी वंस विधुंसण राह।

तसु लघु भाई ताराचंद, अवनि जाणि अवतरिउ इंद्र॥

ध्रूय जिम अविचल पालइ धरा, शत्रु सहू कीधा पाधरा।

तसु आदेश लही सुभ भाई, सभा सहित पांमी सुपसाइ॥

वात रची वादिल तणी, सांमि धरमि सोहामणी।

वीरारस सिणगार विशेष, रस बेरस अछइ सविसेष॥

सुणता सवि सुख संपद मिलइ, भणतां भावटि दूरइं टलइ।

ऊजम अंगि हुई अति घणइ, मुहकम जाणइ करि मंत्रणउ॥

खटसित षोडस गाथां बंधि, सुणिउ तिसु भाख्यउ संबंधि।

अधिक ऊन जे हुइ उच्यरिउं, सयण सुणी ते करयो खरुं॥

सांमि रम पालंतां सदा, सगली आवइ घरि संपदा।

सुर नर सहू प्रसंसा करइ, वरमाला ले लखमी वरइ॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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