चौपाई

समद रूपी यो द्रिगम संसार।
पूरण व्रंम उत्तारै पार।
नीर मांहि मिळ जावै नीर।
खीर मांहि संमावै खीर॥

मोरो आतम धीर समीर।
सांभवि तोर मांहि सरीर।
भणै 'ईसरौ' लाछि भ्रतार।
क्रम बंधण छोड़िवि करतार॥

जांणां हूं की तूं घण जांण।
(थारा) वेद न सकियौ करे वखांण।
अम्ह चै विसन तुम्हां ची आस।
आदि पुरिखि जुग जुग अविणास॥
स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : ईसरदास बारहठ ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा साहित्य संगम (अकादमी), बीकानेर (राजस्थान) ,
  • संस्करण : तृतीय
जुड़्योड़ा विसै