जदुनाथ काळी समी बाथ जोड़ै,

घंणी भोम चाली चढ़ी बात घोड़ै।

ऊभा गाय गोवाळ झुरंत आरै,

हाहाकार हक्कार संसार सारै॥

सुण्यौ बात आघात माता सनेही,

जसोदा ढळी कदळी खंभ जेही।

संबाहै सखी लार हाली सयांणी,

रहावी बिचाळै थकी नंदराणी॥

तबै नन्दरी लार आहीर टोळा,

खड़ै आपड़ै हेक-हेका खंधोळा।

जुवै जोषिता जूथ भेळी जसूदा,

बपैयो हुई, कांनह्वो मेघ-बूंदा॥

बिहूं लोचनै नीर-धारा बहंती,

कनैयौ कनैयौ जसूदा कहंती।

कलंदी तणै आइ लोटंत कांठै,

गयौ जांणि चिंतामणि रंक गांठै॥

बलद्देव बूझ्यौ दिखाळ्यौ सुदामा,

रम्यौ सांम ते ठाम जोवंत रामा।

लियां जीह दंते नहीं लीक लोपी,

गुड़ै गाय गोपाळ झुरंत्य गोपी॥

ऊभी घूंट हेको करी जात आरा,

थंभेरी हूकां लहैका मथारा।

जसोदान के झंप साधी जमन्‌ना,

पहे लाभियौ मान हू जात पन्‌ना॥

“यदुपति श्रीकृष्ण कालिया से बाहु युध्द करेंगे” यह बात घोड़े चढ़कर(अत्यन्त तीव्र गति से) दूर-दूर तक पहुंच गई। गायें एवं ग्वालों सहित वहाँ खड़े सभी जन विलाप करने लगे तथा सारे विश्व में हाहाकार मच गया।

यह सुनकर स्नेहमयी माता यशोदाजी इस बात के आघात से कदली स्तंभ की तरह गिर गई। समझदार सखियों ने उन्हें सम्हाला और फिर वे उनके पीछे-पीछे चलने लगीं, किन्तु चलते-चलते वे मार्ग में ही थक गई।

तभी नंद के पीछे अहीर-समूह एक दूसरे के कंधों को पकड़-पकड़ कर चलने लगा तथा स्त्री-समूह में यशोदाजी चातक के समान बनी हुई कन्हैया रूपी मेघ-बूंदों को देख रही थीं।

यशोदाजी कन्हैया! कन्हैया!! कहती हुई, दोनों आँखों से अश्रुधारा बहाती हुई, यमुना के तट पर लौट रही थीं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो किसी दीन-हीन के पास से चिन्तामणि रत्न खो गया हो।

बलदेव के पूछने पर सुदामा ने जिस स्थान पर श्रीकृष्ण खेले थे वह स्थान बताया। उसे यशोदाजी देख रही थीं। पास ही गायें, ग्वाल-बाल और गोपिकाएं, दांतों तले जीभ दबाये हुए विलाप कर रहे थे।

समस्त गायें, गोप एवं ग्वालिनियां मानसिक-पीड़ा रुकने के कारण उच्च-स्वर से आर्तनाद करती हुई यूथ बनाए खड़ी थीं। इधर भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना के अंदर छलांग लगाईं। उनको पानी के अन्दर मार्ग मिल गया। वे जल में ऐसे विचरण कर रहे थे मानों सर्प पानी के अन्दर विचर रहा हो।

स्रोत
  • पोथी : नागदमण (नागदमण) ,
  • सिरजक : सांयाजी झूला ,
  • संपादक : मूलचंद प्राणेश ,
  • प्रकाशक : भारतीय विधा मंदिर शोध प्रतिष्ठान, बीकानेर ,
  • संस्करण : तृतीय
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