जिसी सिंघवी राग काळी जगायौ
उपाड़ै फंणाकार द्रब्बार आयौ।
फंणाकार झाटकतै पूंछ फेरी,
घणौ घातियौ सांकड़ै सांम घेरी॥
घेयों नंदरौ धोट अहिकोट अेहो,
जळाबोळ मांहै कळा-सोळ जेहो।
नौळी वांटतै सांमटी झाट नांखी,
प्रभु अंग लागी सोई फूल पांखी॥
गोपीनाथ रा हाथ आया गडूद्दै,
अहि गारड़ी जांण छांटै उड़द्दै।
अहीमूंठ बाजै जिहा नां उपाड़ै,
रमै गारड़ू जांणि काळी रंमाड़ै॥
जुड़ी जाति टोळा मिळी नागजादी,
विढै साप नै सांमळौ सूरवादी।
उभै जूंग जेथी फिरै नीर ऊंडै,
काळी नाग नूं आंणियौ कान्ह कूंडै॥
पैसारा उसारा खरा पाइकांरा,
सहै नाग सारा नरां नाइकांरा।
मचै मूंठ मारा झरै श्रोण झारा,
फंणारा घंणारा करै फुत्रकारा॥
उड़ै डींगळा पींगळा रा अंगारा,
अधीराज मारा उवै कीध आरा।
कान्हारा करारा खमै हाथ खारा,
वोछी नाव धारा वहै वारवारा॥
तिधारा चौधारा जुड़ै भव्वतारा,
पाटूरा प्रहारा धका ढींचणांरा।
घमूंरा घसारा सहै साप सारा,
पड़ै पाव, पाणां मथै मिण्णिधारा॥
ग्रह्यौ गूंदळी जेम काळी लगारा,
खमै आज थारा भुजै सेस भारा
ध्रुजंती धरा रा थ्रकै थंभ भारा,
निहस्सै नगारा सुरांरा सवारा॥8
जैसी सिंधु राग से कालिय को जगाया वैसी ही आकृति बनाए, फणों के समूह को ऊँचा उठाए, वह दरबार में आया। उसने फणों का प्रहार करते हुए अपनी पूंछ का चारों ओर घेरा देकर कृष्ण को संकट में डाल दिया॥
कालिय ने परकोटे के समान शरीर का घेरा देकर नंदकुमार को घेर लिया। इसमें घिरे हुए श्रीकृष्ण बादलों के अदंर चंद्रमा की तरह दिखाई देते थे। कालिय ने डक-डक शब्द करते हुए जोर का प्रहार किया। प्रभु के अंग पर वह पुष्प-पंखुड़ी की तरह लगा॥
गोपीनाथ के दोनों हाथ कालिय की गर्दन के पीछे आए मानों गारुड़ी सांप को वश में करने के लिए उड़द छांट रहा हो। कालिय की केवल कंठ-ध्वनि ही बज रही थी वह जिव्हा नहीं उठा रहा था मानों कोई गारुड़ी खेल करता हुआ सांप को खिला रहा हो॥
जहां पर कालिय नाग तथा श्री कृष्ण दोनों लड़ रहे थे वहां समस्त जाति की नागिनियां समूह बनाकर एकत्र हुई। पश्चात् उस स्थान से कालिय को भगवान श्रीकृष्ण द्रह के गहरे पानी में ले आये॥
नरनायक श्रीकृष्ण द्वारा किये गये तीक्ष्ण पदाघात को कालिय सहने लगा तथा मुष्टिका प्रहार से कालिय के मुंह द्वारा श्रोणित के फव्वारे चलने और वह अपने सारे फणों से फूत्कार करने लगा॥
श्रीकृष्ण की मार द्वारा उसने आर्तनाद किया तथा अंगारों के सदृश डिंगलमय एवं पिंगलमय वचन कहने लगा। श्रीकृष्ण के प्रहारों को सहता हुआ कालिय, जल धारा के अंदर छोटी नाव के समान तैर रहा था॥
भव-तारक श्रीकृष्ण, कालिय के साथ तिरछे एवं सामने से भिड़े तथा पैरों में पड़े हुए सांप को हाथों से मथने लगे। सांप, श्रीकृष्ण के द्वारा किये गये एड़ियों के घुटनों के तथा मुक्कों के प्रहार सहन कर रहा था॥
श्रीकृष्ण की भुजाएं आज शेष के समान कालिय के भार को सहन कर रही हैं। उन्होंने कालिय को गूंदळी(हरे प्याज के पत्ते) के समान उठा लिया। उस समय भार से पृथ्वी कंपायमान होने लगी। बड़े-बड़े स्तम्भ भी थिरकने लगे और देवताओं की विजय दुन्दुभि बजने लगी॥