वई वांसळी सिंग्गळी नादवा तां।

गळै माळ गुंजा ब्रजं बाळ गातां।

सबै आमला सामला प्रत्य-सद्दा,

जमूनां तणै तीर आहीर-जद्दा॥1

रमेवा सबै साथ सूं हेक रागै,

कहै कीजियै कान्ह भीरु विभागै।

वईकुंठ रै नाथ रूड़ी विचारी,

किया सारखा लोक बेहू किनारी॥2

पखै-पार पिंडार था दोहू पासै,

लिया लक्कड़ी कंध ऊभा हुलासै।

घड़ू-गेडियै गेंद मैदान घेरी,

घंणी घूमरै डंबरै घेर घेरी॥3

झिलै आवता ऊलटै हेक झेरै,

फिरी राम चोटां कही दोट फेरै।

मंझी आकरो मांझिया खेल मातौ,

रमै संग गोवाळियां रंगरातौ॥4

मिलै चोट सांमी सबी दोट माथै,

हुई दुहूं मल्लां तंणी हेल हाथै।

चढ़ावै घंणू सांकड़ै तीर चाढै

जमुनां तंणै नांखियौ नीर जाडै॥5

दड़ी लार कान्हौ चढ्यौ ब्रच्छ डाळी,

भरी झंप,काळी द्रहै नाग-वाळी।

काळीनाग रा कान्ह संभाळ केवा,

लधी जांण त्रूट्यौ दधी मच्छ लेवा॥6

मंड्यौ दुसरौ खेल खेलंत माथै,

हिवै ऊतरी वात गोवाळ हाथै।

करै त्रीन खंडो, नमंतेय कान्हा,

जोवै धेन धध्दीक कांठै जमन्ना॥7

बांसुरी एवं सींगी के बजने की ध्वनि हुई। ब्रज-बालकों के शरीर पर गुंजाओ की मालाएं शोभित हो रही थीं। इधर-उधर वाले सारे गोप-बालक यमुना-तट पर परस्पर शब्द करने लगे।1

खेलने के लिए सब बालकों ने एक स्वर से कहा कि- हे कृष्ण! आप हमारे साथी(भीरु) बांट दीजिये। बैकुण्ठपति श्रीकृष्ण ने अच्छी तरह विचार करके बराबर के लोग दोनों ओर बांट दिये।2

दोनों ओर अपार गोप-बालक कंधो पर लाठियां लिये उल्लसित हो रहे थे। इतने में ही गढ़े हुए गेडिये से गेंद को मैदान के अंदर घुमाने का प्रदर्शन करते हुए घेर लिया।3

मुख्य खिलाडियों में प्रमुख खिलाडी श्रीकृष्ण खेल में मस्त तथा लीन होकर ग्वालों के साथ खेल रहे हैं। वे अधर मार्ग से आती हुई गेंद को एक चोट से उलट देते हैं एवं ‘राम चोट’ कहते हुए उस गेंद की चाल को पलट देते हैं।4

दोनों ओर के खिलाडियों के सम्मिलित हाथों से गेंद की सभी चालों पर आपने-सामने प्रहार होने लगे तथा यमुना तट पर अत्यन्त निकट ले जाते हुए गेंद को यमुना के गहरे पानी में डाल दिया।5

गेंद के पीछे श्रीकृष्ण वृक्ष की डाल पर चढ़े और जहाँ पर कालिया नाग का कुण्ड था उसमें छलांग लगाई। श्रीकृष्ण, कालिया नाग का बैर स्मरण करके इस प्रकार कूदे मानो लुब्धक(किलकिला पक्षी) मच्छी प्राप्त करने के लिए समुद्र में कूदा हो।6

खेल ही खेल में अचानक खेल बदल गया। अब ग्वालों के हाथ से बात निकल चुकी थी। श्रीकृष्ण को तीनों खंड नमस्कार करने लगे और यमुना के तट पर खड़ी हुई गायें स्तब्ध होकर देखने लगीं।7

स्रोत
  • पोथी : नागदमण (नागदमण) ,
  • सिरजक : सांयाजी झूला ,
  • संपादक : मूलचंद प्राणेश ,
  • प्रकाशक : भारतीय विधा मंदिर शोध प्रतिष्ठान, बीकानेर ,
  • संस्करण : तृतीय
जुड़्योड़ा विसै