कहूं पिक्खयं तेज तत्ते तुरंगा।
कहूं दिक्खये मत्र मत्ते मतंगा॥
कहूं उक्खि अस्वं रथं पंति तानं।
कहूं भूप चौगान खेलं रसानं॥
कहुं दारमी दाख मेवा अनारं।
कहुं नागवल्ली चूना खैर सालं॥
कहुं जागी आरम्भ प्रारम्भ जंगं।
कहुं विप्र वेदं धुनी रंग मंगं॥
कहुं पाठकं खिप्र विप्रं किसोरं।
मनु प्रावहं ददुरं मेघ घोरं॥