गदा गुझरा खग्ग खंडा दुधारा,

वने वज्र से विश्वकर्मा सुधारा।

छुरी सत्तका सांग सूलै त्रसूलै,

फरस्सी कुठारा लियै चित्त फूलै॥

हळा मूसळा अंकुसा पासि हथ्थे,

चुगा मक्षिका चकृ विंछू समथ्थै।

धनुबार्न भाला कुदालां धरज्जै,

लखे कर्तरी सत्रु कंपे करज्जै॥

सजै सस्त्र छत्तीस बत्तीस सोभा,

प्रभा पूर पेखै परी पुंज लोभा।

हसती हमल्लै चलै तोपखांनै,

भरे गात्र के भूर सिंदूर सानै॥

स्रोत
  • पोथी : नाथ चंद्रिका ,
  • सिरजक : उत्तमचंद भंडारी ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर
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