विहांणू नवो नाथ जागौ वहेला,

हुयौ दोहिवा धेनु, गोवाळ हेला।

जगाड़ै जसोदा जदुनाथ जागै,

मही माट धूमै, नवैनीत मांगै॥1

जिमावै जिकै भावता भोग जांणि,

परूसै जसोदा जिमै चक्रपाणी।

अरोगै अघायै कियौ आचमन्न,

कपूरी ग्रहै पान बीड़ा क्रसन्नं॥2

लिया सार सिंगार गोचार-लीला,

करै आज को जम्मुना तट्ट कीला।

सुण्यौ सांम आगम्म ऊभी सहेली,

हरेवा हरेवा हवेली हवेली॥3

भर्या मांग सिंदूर मारग्ग भाळै,

वहै सांमलो ब्रज सेरी विचाळै।

वहै लार लव्वार पिंडार बाळै,

नवा नेह सूं तेह गोपी निहाळै॥4

हरीहो हरीहो हरी धेन हांकै,

झरूखां चढ़ी नंदकुम्मार झांकै।

अहीराणीयां अव्वला झूल आवै,

भगव्वान नै धेन गोप्यां भळावै॥5

इकी बेवटी चोवटै आय ऊभी,

संभाळी लियौ स्याम मोरी सुरम्भी।

हुई नंदरी धेन सूं धेन हेला,

भिळै वाळवा जाणि श्रीगंग भेळा॥6

पुळी नै’र नीसर आवी प्रहट्टै,

त्रिवेणी उळट्टीय समंद्र तट्टै।

महक्कंत सौंधा तंणी सौढ माथै,

हरी मंजरी तिल्लक वेण हाथै॥7

हे नाथ! प्रातःकाल में गायों को दूहने के लिए ग्वालों की पुकार हो रही है अतः शीघ्र जागिए। इस प्रकार यशोदाजी के जगाने पर यदुपति श्रीकृष्ण जागे और मटके में दही मथते देखकर नवनीत मांगने लगे।1

श्रीकृष्ण को जो जो व्यंजन रुचिकर हैं उन्हें ही परोस कर यशोदाजी भोजन करवा रही है। तृप्त होकर भोजन कर लेने के पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण ने आचमन किया और कपूरी पान का बीड़ा ग्रहण किया।2

भगवान श्री कृष्ण ने गोचारण के शृंगार-प्रसाधन कर लिये क्योंकि आज वे यमुना-तट पर कोई खेल करेंगे। उनका आगमन सुन कर गोकुल-बालाएँ प्रत्येक मकान पर उन्हें देखने को खड़ी हो गई।3

श्यामल-गात्र श्रीकृष्ण ब्रज की गली में चल रहें हैं और उनके पीछे दुधमुंहे बछड़े तथा बाल-ग्वाल चल रहे हैं जिन्हें मांग में सिंदूर भरे गोपियां नूतन स्नेह-सिक्त होकर मार्ग में देख रही हैं।4

भगवान श्रीकृष्ण हरी हो! हरी हो! कहते हुए गायों को हांक रहे हैं। इधर ब्रज की स्त्रियाँ झरोखों में बैठकर नंदकुमार को देख रही हैं। उधर अहीरनियों का सुन्दर समूह तथा गोपिकाएँ आकर अपनी-अपनी गायें श्रीकृष्ण को संभला रही है।5

इक्की-दुक्की गोप-बाला चौराहे पर आकर खड़ी हो गई और भगवान से कहने लगी कि- श्याम! मेरी गाय को सम्हाल लेना। नंद के गो-समूह के साथ अन्य गायें इस प्रकार आ-आ कर मिल रही हैं मानों नाले आ-आ कर गंगा में मिल रहे हों।6

सारी गायें चल पड़ीं और नगर से निकल कर समतल भूमि में गई जैसे सागरतट पर त्रिवेणी उलट आई हो। श्रीकृष्ण तिलकयुक्त मस्तक पर हरी तुलसी और सौंधा की सुवासित सुंगधि धारण किये तथा हाथों में बांसुरी लिये रहे हैं।7

स्रोत
  • पोथी : नागदमण (नागदमण) ,
  • सिरजक : सांयाजी झूला ,
  • संपादक : मूलचंद प्राणेश ,
  • प्रकाशक : भारतीय विधा मंदिर शोध प्रतिष्ठान, बीकानेर ,
  • संस्करण : तृतीय
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