प्रगति अेक निस्चित जगां सूं आगिनैं कानीं जावणौ है। मिनख, समाज अर व्यवस्था री प्रगति रो चिन्तन पूंजीवादी व्यवस्था अर सामन्तसाही सासन प्रणाली ताई इज भेळो हुयोड़ो हो। इणरै पछै मिनख समाज में प्रजातांत्रिक व्यवस्था देयी पण व्यवस्था रो पूंजीवादी सरूप गयो कोनीं, फगत बदळ्यो ई। व्यवस्था में बदळाव फगत इतरो ई आयो कै पैलां गीरज राज किया करता अर अबै कागला करै लागा। मिनख तो हालताईं भी व्यवस्था नैं तरसै। मार्क्स इण जगां सूं पूगता तौर सूं आगीनैं चाल्यो। वो ‘सामन्त’ अर ‘लोग’ जैड़ा सबदां री जगां ‘मजूर’ सबद लगायो अर व्यवस्था नै कागला सूं छुड़ाय’र मजूरां नै देय दीनी। मार्क्स रो चिन्तन अब ताईं रै धरातळ सूं घणो ऊंचो, जिणनै वां रा चेला-चांटी झाड़-फूंक’र मार्क्सवाद करार कर दीन्यो। साहित में आ ईज चिन्तन प्रगतीवादी चिन्तन कहीजै।
मार्क्स चिन्तन रै पुराणै अर मिनख सूं परवारै पड़्यै धरातल नैं छोड़’र अेक भोत ई, सोवणी शैली में आगीनैं कानी ‘मार्चपास्ट’ कियो, इण वास्तै वां रै चेला-चांटियां रो इण नै ‘प्रगतिवाद’ कैवणो बेजां कोनी। पीड़ित अर प्रताड़ित आदमी रो चिन्तन है। पण अठै ध्यान देवण जोग बात आ है कै मार्क्स को आखो चिन्तन मजूर माथै इज टिक्योड़ो है। वां रा चेला-चांटी मजूर नैं इज गरीब मान लियो है। मतलब कै मजूर गरीब है अर गरीब मजूर है। मार्क्स रै चिन्तन में जुगां-जुगां सूं पीड़ भोगतै गरीब मजूर आदमी रो चिन्तन तो है पण स्रिस्टी री सरुआत सूं पीड़ भोगतै मिनख रो चिन्तन कोनी। आदमी फगत मजूर ई कोनी।
बीसवीं सदी रै साथै मार्क्सवाद रो फैलाव हुयो अर मार्क्स रै चिन्तन में वां रा चिन्तनशील चेला भोत सी ढेर सारी बातां और जोड़ दीनी; जिणां नै भलां ई मार्क्स खुलासा नीं करी हुवै। मार्क्स रै टीकाकारां रै पछै जिको सरूप सामनै आयो वो है आज रो मार्क्सवाद अर साहितकारां रो आपरो प्रगतीवाद।
मिनख रै मजदूर मेख माथै मेल्योड़ो मार्क्सवाद मानववाद रो भोत ई छोटो अर भोत ई नान्हो संस्करण है। मानववाद मार्क्सवादी चिन्तन रै धरातळ सूं भोत ई आगै अेक सोवणो अर सांचो प्रस्थान है। इण वास्तै अबै झोड़ पड़ जावै कै प्रगतिवादी कुण है?
साहित रो मौजूदा प्रगतिवादी समुदाय प्रचलित अरथां में तो प्रगतिवादी हुय सकै पण यथार्थवादी पारिभाषिक भेख सूं कतैई नीं। सांचो अर असली प्रगतीवादी चिन्तन मानववादी चिन्तन है। मिनख तो तरसतो रैवै, अर आपां कठै और इज जगां चिन्तन करता रैवां अर दूबळा हुवता रैवां – मरीचिका है।
असली प्रगतिवादी हालताईं गैर है, दूसरा है।
वाद अधूरा है। आदमी पूरो कोनीं। इणी वास्तै समग्र चिन्तन वादां सूं परै अर मिनख रै सांकड़ै, सांचो अर आछो आगीनै जावणो है।
आदमी मजूर तो है, पण मजूर ई आदमी कोनी, वो गरीब भी है, बो मजबूर भी है। मानववादी चिन्तन बिना चस्मां रै सावळसिर बीं गरीब, मजबूर अर मजूर रो आखो विकास अर वींनै व्यवस्था रो असली हकदार मानणै रो चिन्तन है। चिन्तनपूर्ण सुव्यवस्थित व्यवस्था मानववादी व्यवस्था है।
वा यथार्थवादी व्यवस्था है फगत आदर्शवादी नीं। जिण नै गैर-प्रगतिवादी कैय’र दुत्कार दीनी है– प्रगति रा हिमायती। आ मार्क्स री सीख कोनीं, वां रै सुजोग चैलां री करामात है।
प्रगति मिनख रै आखै सरुप रै विकास रो फलन (Function) है, वीं रै फगत अेक विसेसणात्मक सरूप रो नीं। पूंजी पूगता तौर सूं बुराई है पण आवश्यक बुराई। इण नै मिनख सूं जिती परै राखी जावै उत्ती ई ठीक है। पण इण सूं विसेसण काढ’र मिनख रै लगावणो अर चिन्तन करणो, सबळो चिन्तन नीं हुय सकै। पूंजीपति अर मजूर रो चिन्तन मिनख रो अधूरो अर अेकांगी चिन्तन है। जे मिनख रै समग्र सरूप नैं देख’र नुंवी व्यवस्था खोजणी है तो बीं रै आखै विकास रो चिन्तन कर परा व्यवस्था नैं बीं रै कनै लावणो पड़सी, न कि बीं नै व्यवस्था रै कनै।
जिण नैं आज प्रगतिवाद कैयो जावै, वो अेक सबदां रो नीरो भरम है। वाद सूं भर्योड़ो भुलावो है। प्रगति थिर नीं हुवै, म्हारा बेली! इण नैं हाथ सूं पकड़ थाम देवणो, छळावो है। मार्क्स रै आगै मिनख पांवडा भरर्यो है। बीं नैं देखणो भोत जरूरी है। वीं रै चिन्तन नैं पिछाणो! घेरै रै अंधारै में मतना जीवो। इण अंधारै नैं परै कर’र देखो, थांनै चांनणो दीखसी! असली प्रगतिवाद रा दरसण हुसी।
चिन्तन पसवाड़ो फेर्यो है। मार्क्स लारै रैयग्यो है– भोत लारै। मिनख वीं सूं भोत आगै नीसरग्यो है। वो नुवां आयाम कायम कर रैयो है।
मिनख न्याव चावै। साम्य चावै। इणी वारतै बो पूंजीवादी व्यवस्था रो मोटो विरोधी है। बो अपणै आपनै फगत मजूर रै भेख में नीं देख सकै। बीं रै भेजो भी है। आ इज वजै है कै वो चिन्तन रा नुवां आयाम सामै मेल्या है, अर व्यवस्था नै अेक नुवों चिन्तन दियो है।
आम आदमी आज गरीब है। व्यवस्था बीं नै मजबूर बणाय रैयी है। इणी वास्तै वो इण व्यवस्था रो मोटो विरोधी है। पण मजबूरी बीं रा पग बांध मेल्या है। बेड़यां बीं नै चालण को देवै नीं। वो खुद आं नै अेक दिन तोड़सी, क्यूं कै वीं रै टीस है। बो पांगळो कोनी। बांध्यां तो ढोर-ढांडा ई को रैवै नी, म्हारा बेली! मार्क्स नीं, बीं रो मिनख बीं नै बेड़्यां तोड़ण री प्रेरणा देवै।
मार्क्स आदमी रै सरीर में फगत मजूर भर’र देख्यो है जदकि बीं नैं मिनख भर’र देखणो चाहिजै हो। मानववाद वीं री देही में मिनख भर’र देखै, अर बीं नैं व्यवस्था माथै विजय हासिल करणै री प्रेरणा देवै। आदमी रो समग्र रूप मजूर नीं, मिनख है समग्र रूप सूं वो मानव है, जिणरा केई रूप है। मजूर भी जिणां में सूं अेक है।
आदमी रो समग्र रूप आधुनिक सुख-सुविधावां यानि पूंजीवादी प्रलोभना सूं प्रभावित हुयोड़ो है, जिको वीं नैं मानव सूं परै लेय जाय रैयो है अर मार्क्स सूं विमुख। आ आदमी री आज री अबखी थिति है, अर मिनख की अबखाई। युगीन चिन्तन अठै सूं इज सरू हुवैला, मार्क्स सूं नीं। क्यूं कै मार्क्स रो ठावो मजूर भी आज इण अबखी थिति में भेळो हुयो बैठ्यो है।
व्यवस्था रा जलम दियोड़ा किटाणुवां अर दोसां में जीवणआळो गरीब मजूर अर मजबूर आदमी मार्क्सवादी नीं है। बीं रो ध्यान सुख-सुविधावां अर किटाणुवां कानी जादा है। बो भी अब तो आं किटाणुवां में अेक किटाणु बणतो जाय रैयो है। बचावो म्हारा वेळी, बी नैं बचावो!
चिन्तन नैं वीं इण गिरफत सूं बारै निसरबा री प्रेरणा देवणी पड़सी। बोलो! थारी चिन्तन के वीं नै आ प्रेरणा देय रैयो है? नीं!!! फुरसत में वो मिनखपणै कानीं देखै। इणी वास्तै वीं नैं मजूरवादी नीं, मानववादी दीठ द्यो!
मार्क्स रै नेड़ै जाय’र जद मिनख आपरै समग्र सरूप नैं देखसी तो बो बीं बींनैं लारै छोड़’र पक्कायत आगै निसर जासी। कारण कै मानववादी व्यवस्था मार्क्सवादी व्यवस्था सूं कैई जगां जादा सुधार्योड़ी अर सुथरी व्यवस्था है।
आदमी मार्क्सवादी मजूर री नीं, मिनख री खोज कर रैयो है। आ इज वीं री असली प्रगति है अर आ इज बीं री असली प्रगति है अर आ इज बीं री मंजल।
मार्क्सवादी व्यवस्था रै पछै व्यवस्था बदळ सकै; इण व्यवस्था में बडी थोथ है। आ छेळी प्रगति कोनीं। आदमी में मिनख री हुंसैर अजेस भी रैवै। इणी वास्तै वो मिनख कानीं चालै अर मानववादी व्यवस्था रै हांफला घाल्यां बिना नीं रैय सकै। मानववादी व्यवस्था में कठै ई थोथ कोनी। आ स्थाई व्यवस्था है। मिनख आपरै ठीकाणै सिर पूगै ई; भलां ई वींनै गेलै में रोड़ लेवो। वो बांध्यो नीं रैवै। इण वास्तै पड़ाव नैं ठीकाणो बताय’र वीं नै बांध’र प्रगतिवादी कैय देवणो कुंठा है, म्हारा बेली!
मुद्रा बुराई है– घणी जरूरी। जिकी खुद विनिमय प्रणाली रै आगीनैं पांवडो है, अर प्रगति का अैनाण लिया है। इण नै खतम नीं करी जाय सकै। रूस इत्तो आगै बढ्यां पछै भी रूबल नैं नीं तोड़ सक्यो।
व्यवस्था माथै मिनख, मंजल है। मजूर पड़ाव है। व्यवस्था नै मिनख रै नेड़ै लाय’र वीं नै प्रतिष्ठित करणो जतनां रो लक्ष्य हुवणो चाहिजै, वीं नैं मजूर रै कनैं ले जाय’र वीं नैं बीं रो अधिठाता बणाय देवणो असल में प्रगति नीं है। जे आदमी नै इसी प्रगतिवादी बण जावैला, जिण नैं वो सरूपोत सूं इज चावतो रैयो है। पण बीं नैं पूगण नीं दीरीजियो। घेरै में बांध’र गेर दीन्यो। इण बखत घेरावादी असली प्रगतिवाद नैं समझैला। आछो तो ओ है कै सरूपोत सूं ई आदमी नैं दिसा दीखाय दी जावै। अर बो आपरी जतन जात्रा आपरो असली अर सही लक्ष्य बणाय’र सरू करै। पड़ाव मंजिल नीं हुवै, म्हारा बेली!
प्रगतिवादी आप रै च्यारूं कानी पड़्योड़ै घेरै नै तोड़ण में झिझकै। सुवारथ बां नैं निसरबा को देवैनी। सुवारथ यानि संघटण रा लाभ। बो घाटै रो सोदौ नीं कर सकै। बस आ इज इण प्रगतिवादी संघटण री कमजोरी है। पण मिनख मिनख रै खातर त्याग करै अर दुख सेवै।
संगठण नैं सै मिल मेली है। इणी वास्तै बो ऊंची आकांक्षावा रै लारै गैलो हुयग्यो है। अर घेरै में बैठ्यो आदमी आपरै सुवारथ खातर आपरै मिनख नैं मार रैयो है। घेरो सामै है!
पड़ाव नैं मंजल मतना कैवो, म्हारा बेली! आदमी नैं मंजल रो लक्ष्य बणा लेवण द्यो! जिण नैं थे प्रगति मानो, बा प्रगति तो है, पण चिन्तन रा पग इण सूं भी आगै पड़ चुक्या है। घेरै सूं बारै आय’र देखो; थांनै आदमी आगै चालतो दिखसी अर प्रगतिवाद लारै पड़्यो। समग्र चिन्तन तो आ इज कैवै, म्हारा बेली! नारा (स्लोगन्स) री बात न्यारी है। बां सूं मिनख रो लेण-देण कोनीं, क्यूं कै नारा साजिस है। मिनख साजिसां सूं दूर रैवै। इण वास्तै बात मिनख री करो! शास्वत चिन्तन री करो।