राजस्थानी रै प्राचीन गद्य में जठै सामाजिक नै धार्मिक गद्य री अधिकता है उठै ऐतिहासिक गद्य भी घणौ सांवठौ नै केई भांत रौ है। बात, ख्यात, वंशावळी, विगत, हकीकत, प्रस्ताव, बही, हवालो, याददास्त वगैरा केई रूपां में औ गद्य मिलै। इण सगळां में घणौ महताऊ ख्यात नै विगत साहित्य है।
ख्यात शब्द संस्कृत रै ख्याति सब्द रौ अपभ्रंश रूप मानीजै। किणी राज्य या राजवंश रौ विस्तृत वर्णन इणां में मिळै। मुहणोत नैणसी री ख्यात ख्यातां में घणी चावी नै इतिहास रौ एक पुखता ग्रंथ मुहता नैणसी जोधपुर रा महाराजा जसवंतसिंह (प्रथम) रै मंत्री पद माथै रैतां थकां लिखियौ। इण ख्यात रै बाद में तो राजस्थान रा रजवाड़ां री न्यारी-न्यारी ख्यातां लिखीजती रही ज्यूं कै—मारवाड़ री ख्यात, दयालदास री बीकानेर री ख्यात, बूँदी री ख्यात, जैसलमेर री ख्यात, भरतपुर री ख्यात आदि। इण रै अलावा केई राजावां री भी छोटी-मोटी ख्यातां मिळै जिकां में उणा राजा रै राज री घटनावां सूं विस्तार वर्णन मिळै।
केई विद्वानां री आ धारणा है कै बादशाह अकबर जद अकबर-नामै रौ लेखण अबुलफ़ज़ल सूं करायौ जद सगळा रजवाड़ां सूं भी वांरी तवारीख जाणणी चाही, जिण सूं सगळा रजवाड़ां आपों-आप री ख्यातां तैयार करवाई। पण अकबर रै समै री लिखियोड़ी हाल तक कोई रजवाड़े री ख्यात देखण में नहीं आई। म्हनै लखावै कै पुरांणै जमानै में विधिवत ख्यातां लिखण रौ रिवाज तो नहीं हो पण बहियां में राज री खास घटनावां जरूर दर्ज होती जिसमें मुसदी नै चारण लोग खास तौर सूं रुची राखता, उणी जूनी बहियां रै आधार माथै नैणसी बगेरा आपरी ख्यातां तैयार करी। इण तरै री बहियां हाल भी मिळै नै उणां में आगे नक़ल होवणा रौ भी हवालौ प्रतिलिकार देवै। चावै जिण ढंग सूं अै ख्यातां लिखी गई हुवौ इणां रौ महत्व इतिहास, संस्कृति नै प्राचिन राजस्थानी गद्य री दीठ सूं महताऊ है, इण में कोई दोय राय कोनी।
अै ख्यातां दो री कहीजै। प्रो. नरोत्तदासजी स्वामी इणां रा नाम (क) सैलंग ख्यात नै (ग) फुटकर ख्यात दिया।1 पैली ख्यात रौ उदाहरण नैणसी री ख्यात है जिण में किसी राजवंश रौ वर्णन तरतीबवार दियौ गयौ हौ। इणां में विस्तार पण मिळै। दूजी ख्यात बांकीदास री है जिण में ऐतिहासिक घटनावां माथै छोटी-छोटी टिप्पणियां सी है। अै टिप्पणियां बांकीदास री बातां रै नांव सूं भी केई साहित्यकारां महसूस कर राखी है पण असल में बातां न होनै इतिहास संबंधी कुछ टिप्पा ही है जिके याद राखण नै टीप लिया गया हैष म्हारै ख्याल सूं इण तरै री टिप्पणियां नै जिकों में मूलत: कोई क्रम भी कोनी ख्यात नीं कही जाणी चाहीजै क्यूं ख्यात री लेखण पद्धति में इणां में घणौ फर्क है। नै सही मायनै में इणां सूं ख्यात री गरज भी कोनी सरैं। इण खातर म्हारै खयाल सूं इण भांत री सामग्री नै ऐतिहासिक याददास्त ही कही जाणी चाहीजै।
प्रत्येक ख्यात रा न्यारा-न्यारा अध्याय हुवै, जिकां नै बात कयौ जावै, जैसे—बूंदी रै धणियां री बात, पारकर रा सोढ़ां री बात, जैसलमेर रा भाटियां री बात आदि। नैणसी री ख्यात में केई ठौड़ विसेस घटनावां व ऐतिहासिक व्यक्तियां नै ले नै भी बात कही गई हैं जिणां में इतिहास रै सागै पूरी रोचकता भी है। ख्यातां में घटनावां में विक्रम संवत व तिथियां तकात दर्ज रेवै उठै साख रा जूना दूहा कवित्त गीत वगैरा भी दर्ज रेवै जिण सूं उण घटना रौ पुखतापणौ नै सामाजिक छाप रौ आंकिजणौ भी सांमी आवै। इण ख्यातां रै लिखारां जठै जूनी बहियां सूं मदद ली उठै केई चारणां भाटां कनै सूं बातां सुण नै भी ख्यात में दर्ज करी है। इणी खातर इणां री ऐतिहासिकता में केई जागां घणी निबळाई लखावै क्यूं कै वां में कठेई संवत गळत है तौ कठेई पीढ़ियां रै लेखण में गड़बड़ी है तो कठेई घटनाक्रम ऊकचूक व्हैगौ है अर घणकारी ख्यातां में राजवंस नै राजावां री तारीफ भी जरूरत सूं ज्यादा मिळै क्यूं कै वांनै रोचक बणावण रै फेर में जागा-जागा तथ्य सूं अळगाव कर कल्पना सूं कांम लियौ गयौ है। इणी खातर ओभाजी जैड़ा इतिहास रा प्रकांड पंडितां इण क्यातां नै इतिहास रो पूरो आधार नीं मानियौ नै उणां री घटनावां नै फारसी ग्रंथां व सिलालेखां वग़ैरा री कसौटी मीथै परखी। पण वांरौ कांम इण ख्यातां बिना भी नहीं सर सकियौ। ओभीजी खुद नैणसी री ख्यात नै घणी महताऊ बताई नै आ तकात मंजूर करी कै कर्नल टाड नै जै आ ख्यात मिळ गई होती तो उणां रौ राजस्थान और तरै रौ होवतौ।
आज रै जुग में जद कै इतिहास सासकां नै सरकार व जुद्ध विग्रह री घटनावां तक ही सीमित कोनी रह्यौ उण वगत री सगळी हलचलां इतिहास रौ विसय बणगी जिण सूं उण बखत री सामाजिक चितण धारा नै परखण रौ तकाजौ सांमी आयौ जिण सूं इण ख्यातां रै महत्व में उण सूं फेरूं बधोतरी हुई क्यूं कै इणां में उण समै री केई बातां री जाणकारी मिळै। राज समाज रै रैण-सैण नै रीत रिवाज रै अलावा उण बखत रै सासन रौ ढंग, जुद्ध रा तौर तरीका, खानपान, पैरवास, जातपात नै वारा काम धंधा रौ हवालो भी ण ख्यातां में मिळै। अठा तक कै नारी समाज री पालतां नै मान्यतावां तकात इणां में झांकती निजर आवै।
इणा कारणां सूँ ख्यातां समाज रै अेक महताऊ दस्तावेज रै रूप में आप री न्यारी ओळखांण राखै, वानै सासकां री तारीफ रा पोथा कैय नै अेक तरफ राख देवणौ बड़ी भूल हुवैला, खास तौर सूं वां लोगां खातर जिकै प्राचीन समाज री जांणकारी चावै नै राजस्थानी गद्य री सबळाई री जूनी साख रा दरसण करणी चावै। नैणसी री ख्यात नै दयाळदास री ख्यात ज्यूं हरएक ख्यात अेक ही लेखक री लिखियोड़ी कम मिळै पण इण सूं वांरै गद्य रौ महत्व कम कोनी हुवै क्यूं कै केई अेड़ी अनाम ख्यातां म्हारै देखण में आई हैं जिकां रौ गद्य घणौ सबळौ नै अध्ययन जोग है।
नैणसी री ख्यात रौ गद्य टकसाळी मानाजै। नैणसी राजस्थानी नै फारसी वगैरा भासावां रौ आछौ जांणकार हौ नै उण समै राजकाज में इण दोनूं भासावां रौ ही बोल-बालो हौ जिण सूं उण आपरी कलम सूं राजस्थानी रौ घणौ सधियोड़ौ नौ ओपतो गद्य लिखियौ।
बाकी ख्यातां रा लिखारा भी नैणसी री सैली सूं कोई हद तक प्रभावित लागै पण नैणसी री भासा मुवावरैदार है नै उण रौ एक पृष्ठ पढ़तांई उण समै रौ वातावरण जीवतो-जागतो दीखण लागै। एक उदाहरण सूं ही आ बात स्पष्ट हो जासी—
‘सरवहियो जेसो जागियो। ऊठ नै आंख छाटी। घोड़ां रा तंग ले नै घोड़ै चढ़ियौ। बाग बीच आय ऊभौ रह्यौ। चारण सारी बात जेसा नूं कही। जेसे सारी बात सुणी। पछै वीरधवळ नूं पूछियो—‘पातसाह किसो? मोनूं ओळखाव’ तरै चारण वीर-धवळ जेसा नूं कह्यौ—‘औ हाथी चढ़यौ पातसाह ऊभौ।’ तरै जेसे चारण नूं कह्यौ—“तूँ पातसाह कनै जाय मोनूं दिखाव दे। कोई थारै मांणस छुड़वण रौ साजीबंध कर।”2
इण उदाहरण सूं ख्यात है कै नैणसी आपरै गद्य में ठेट पश्चिमी राजस्थानी रौ सांवठौ प्रयोग करियौ है। उण री भासा में जठै वाक्य छोटा नै तीखा है उठै वार्तालाप भी प्रभावशाली नै समै सापेख है।
राजस्थानी में ख्यात ज्यूं ही विगत रौ घणौ महत्व है। ख्यात में जठै प्राचीन राजवंसां रौ विस्तार सूं वर्णन मिळै विगत में किणी वंस अथवा स्थान, गाँव, परगने या कोई चीज रौ क्रमबद्ध विवरौ मिळै। उण में विवरण जथातथ्य नै संखेप में हुवै। ख्यातां रै बीच-बीच में भी वुगत री टीपां मिळै पण स्वतंत्र रूप सूं लिखियोड़ी विगतां भी केई हैं जैसे—गढ़ कोटों री विगत, पाटण सहर री विगत, ढोलिये कोठार री विगत, पातसाहां री पीढियां री विगत। अै विगतां एक पृष्ठ सूं लेय केई पृष्ठां तक में लिखियोड़ी मिळै।
इण विगत विधा में भी नैणसी री लिखियोड़ी ‘मारवाड़ी रा परगनां री विगत’ घणी मोटी नै मसहूर है। इण में नैणसी महाराजा जसवंतसिंह (प्रथम) रै बखत रा मारवाड़ रा सात परगनां रौ विवरौ दियौ है। नैणसी घणौ लांबै समै तक मारवाड़ री दीवांणगी करी, राज रा राजस्व अधिकार केवटिया परोटिया। इतिहास रै बारै में उण री रुची हीज इण खातर इण विगत में प्रत्येक परगने रौ इतिहास दे नै पर परगने रै गाँवां री तफसील खालसै, सांसरण नै जागीर गाँवां मुजब न्यारी-न्यारी कर पछै पर एक गाँव रौ संखेप में विवरौ दियौ है। केई परगनां में उण परगने में लागण वाळा टैक्स नै लाग-बाग वगैरा री भी सागेड़ी जांणकारी दीवी है। उण गाँव री पाँच बरसां री आमद बी अंकित है।
गाँव री जाणकारी देतां थकां उण पर गाँव री कस्बे सूं दूरी नै दिस तकात रौ उल्लेख कियौ है। गाँव में बसणा वाळी जातियां गाँव एक साखियो कै दो साखियो, गाँव में पांणी रा साधन, कोई खास चीज री निपज, नदी नाळा नै किणी खास आदमी री बसी वगैरा रौ भी वर्णन उण में है।
इण लांठै ग्रंथ में उण बखत री बोहळी नै प्राभाणिक जांणकारी मिळै। उण बखत री सैन्य संचालण पद्धती, जागीर बांटण रा तरीका, राजा नै जागीरदार नै करसां रौ आपसी संबंध तौ इण सूं मालम पड़ै ही है पण साथे ही इण रजवाड़ां रौ दिल्ली रै बादसाह सूं कांई संबंध सलूक हो औ भी आछी तरै प्रकट हुवै। किण राजा नै सरूपोत में बादशाह सूं कितरौ मनसब मिळियौ अर मनसब रै बदणै रै साथै कितरी फौज बधावणी लाजमी ही तथा राजा रौ कुरब नै हकूक कीयां बधतौ अै सगळी बातां इण सूं स्पष्ट हुवै जिके बाकी रा प्राचीन ग्रंथां में खुलासै नीं मिळै।
इण विगत री अेक मोटी देण आ है कै इण सूं उण समै री प्रजा री आर्थिक हालत, व्यौपार नै खेती रा तौर तरीकां री भी केई बातां मालम पड़ै। विगत री अेक बानगी प्रस्सुत है जिसमें परगने फळोधी रै गाँव आऊ रौ विवरौ है—गाँव आऊ।3
“फळोधी था केस 15 ऊगण में। धरती हळवा 400। थळी रा बड़ा खेत। बाजरी मोठ कपास तिल री बड़ी नेपै छै। लळाई एक मास 4 पांणी रहै। कोहर 2, पुरस 50 पांणी मीठौ। थोड़ौ लोग, जाट घर 81, बीजा लेग बांणिया नै रजपूत बसै।
संवत 1715 16 17 18 19
140) 2799) 2750) 4215) 1247)
मेड़तै री धरती री विगत इण मुजब आंकी है—
“परगने मेड़तै रो चक संमत 1630 कीरोड़ी कर मूळै मापियौ थौ। सु कानुंगै हरबस मंडाई। मेड़ता लारै धरती बीघा लाख 2612956 तिण मांहे बाद रा पहाड़ सोर जंगल नदी नाळा बीघा 215430 । बाकी जराइती लाख...।”
इणी तरै परगने सोजत में वसूल किये जाणौ वाळा टैक्स वगैरा री टीप इण मुजब है—सेरीणो, गूघरी, दुमाळो, बळ, रसत, बणियां, अरट, पांन चराई, फरोही, मिलणो, लिखावणी, तलबानो, कणवार, तागीरात आदि।
राजस्थान रा रजवाड़ा उण वगत री प्रसासनिक, राजस्व नै व्यवहार री घणी लूँठी नै सबळ सब्दावली मिळै नै साथे ही आ बात भी इण सूं प्रमाणित हुवै कै पुराणै जमानै में हर प्रकार रै राजकाज रौ काम राजस्थानी में पूरी तरै कायदे मुजब होवतौ।
दूजी तरै रा प्राचीन ग्रंथ तौ भारतीय भासावां में फेर भी मिळ जावै पण इण तरै रो औ ग्रंथ बिरलौ ही है नै राजस्थानी खातर आ बात घणी महताऊ है कै आंपां रौ प्राचीन गद्य कितरौ विकसित हौ नै समाज री जरूरतां मुजब विकसित होवतौ रह्यौ है।
असल में अठै रा राज काज नै समाज री भासा राजस्थानी ही रही जिकी अंग्रेजी सासनकाळ में आय नै पिछड़गी। आज भी उणरी सब्दावली सासन नै समाज री गतिविधियां नै समझण समझावण में कारगुजार हो सकै है इण में कोई संदेह कोनी। जरूरत केवल अपणी ही चीज री अपणास री है।