झड़ बोर या झरबेरी का वानस्पतिक नाम जिजिफुस नूमूलेरिया (Ziziphus nummularia) होता है। यह राजस्थान में बहुतायत से उगने वाली एक कंटीली झाड़ी है जो जमीन से सटकर काफी शाखाओं के रूप में उगती है। यह एक से डेढ़ मीटर ऊंची होती है। इसके पत्तों का आकार एक से दो सेंटीमीटर होता है और इस झाड़ी में दो-दो की जोड़ी में कांटे लगते हैं। झड़बोर में अगस्त-सितंबर माह में फूल लगते हैं और अक्टूबर-नवंबर महीने में छोटे-छोटे बेर जैसे फल लगते हैं। इन्हें झड़बेर या जंगली बेर भी कहते हैं।
ये फल शुरुआत में हरे होते हैं जो पीले होते हुए सुर्ख लाल होकर पक जाते हैं। ये खाने में काफी मीठे और खूब स्वादिष्ट होते हैं। झड़बेरी के फलों में फाइटोकॉन्स्टिट्यूएंट्स नामक रासायनिक यौगिक पाया जाता है जो हृदय को स्वस्थ रखने में मददगार होता है। इसमें भरपूर एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को पनपने से रोकने में सहायक होते हैं। ये विटामिन ए, विटामिन सी और पोटेशियम युक्त होते हैं जिससे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है। बेरों के उपयोग से त्वचा चमकदार बनती है।
झड़बेरी में नाइट्रिक अम्ल होता है जिससे शरीर में रक्त-संचरण में सुधार होता है। बेर में सूजन-रोधी गुण (एंटी इंफ्लेमेटरी) होते हैं जो सूजन की परेशानी दूर करते हैं। कुछ लोगों के शरीर में सर्दियों में जोड़ों में दर्द होता है जिसकी एक वजह सूजन भी होती है। ऐसे में बेर का सेवन करना लाभकारी होता है।
झड़ बेर के पत्ते एसिडिटी प्रतिरोधी होते हैं। ये मुंह और पेट के छाले दूर करने में भी सहायक होते हैं। सूखे बेरों को कूटकर उनका चूर्ण बनाया जाता है जो बेहद स्वादिष्ट होता है। इसे बच्चे काफी पसंद करते हैं।
मरुस्थल में उगने वाली यह कंटीली झाड़ी बहुपयोगी है जिसके फल से लेकर पत्ते तक उपयोगी होते हैं। झड़बेरी के पत्तों से बने चारे को भेड़-बकरियां और ऊंट बड़े चाव से खाते हैं। इसकी कंटीली शाखाओं को खेत और घरों की बाड़ बनाने में काम में लिया जाता है।