राम सुमरि राम सुमरि, राम सुमरि हंसा।

भक्ति जानि ज्ञान ध्यान, छाडो कुल बंसा।

कोटि कर्म भ्रम जारि, पार तोहि उतारै।

मुक्ति लोक पाय मोक्ष, नाम जो उचारै।

सुरति सिंध कोटि चंद, झलकत पल मांही।

पद विमान है अमान, आदि अंत नांहीं।

निराकार अथरि धार, वार पार नाहीं।

व्यापक महबूब खूब, धूप है छांही।

संख तूर दर जहूर,झिलमिल झिल रंगा।

घुरै नाद संगि साथ, चरण कोटि गंगा।

अरस कुरस नूर दरस, तेज पुंज देख्या।

कोटि मान साच मांनि, रूंम रूंम पेख्या।

अमृत रस अमी खीर,खुरदनी खुशहाली।

प्याले मसताक पाख, लालन सिर लाली।

नाद बिंद घट अकार, देह गिरह नांहीं।

निरमल निरदुंद ऐंन, देखत ही होत चैंन,

पलकन के माहीं।

आदि मूल रतन फूल सेत पद सुंभाना

गरीबदास जहां बास दरश में दिवानां॥

स्रोत
  • पोथी : श्री सतगुरु ग्रंथ साहिब ,
  • सिरजक : गरीबदास ,
  • संपादक : आशीष कुमार पाण्डेय ,
  • प्रकाशक : लोकनाथ प्रकाशन , वाराणसी, उत्तर प्रदेश ,
  • संस्करण : प्रथम