इण घट अन्दर बाग बगीचा, इण में सिरजन हारा रे।

इण घट अन्दर सात समन्दर, इण में नव लख तारा रे।

इण घट अन्दर अणहद गूंजे, इण में सब संसारा रे।

पीपा के तो घणो भरसो, इण भज सांई म्हारा रै॥

स्रोत
  • पोथी : राजर्षि संत पीपाजी ,
  • सिरजक : संत पीपाजी ,
  • संपादक : ललित शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम