देस सुरंगों पारको, मोमिण मित बसाय।

अखै खैण वर कामंणी, बैठी केल कराय।

विसन भगति जां मन्य वसै, आं देखण वां चाव।

चितरंगी चढ़ी महलां खड़ी, हूरां लिये हुलाह।

करता नै कामण कहै, अरज सुणौ म्हारी स्यांम।

कलजुग में करणी करै,आणीजे इंणी ठांम।

सदा सुरंगी कांमणी, बरसां सदा बार।

जुग जुगंतर जांवतां, कुंवरा बरस अठार।

नारी कुंजर पहरै कांमणी, खीरोदक नर पहरंति।

अमी कचोले वै पीवै, गुर परसादी रमंति।

सहज मंदळ जित धमकही, बाजै अनहद वीण।

नोरंगी वाणी तन रतन, साध भगत लौलीण।

कोड छमासा जित पड़ै, रंग रावळ उदमाद।

घणहर मंगल गाविये, विसन तणै परसाद।

ऊमाहो मन मोमिणा, चीतारिये सनेह।

हूर सुर घरि आंगणौ, आला नूर बूठा मेह।

पांना फूलां गहगही, सुरनरां सुवाई गल।

सुरंगा सोरंभ आवै घणी, आंगणी नागरबेल।

सचंदण नित थयौ, राति द्योस तां नांहि।

उडण खटोला मन सवा, आणंद ठांवो ठांय।

साजनिया अगन्य दाझई, उंडै डुबांय।

खड़ग धार तूट ही, जोति जोति मिलाय॥

स्रोत
  • पोथी : जांभोजी विष्णोई संप्रदाय और साहित्य ,
  • सिरजक : आलम जी ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी ,
  • प्रकाशक : सत साहित्य प्रकाशन, कलकत्ता ,
  • संस्करण : द्वितीय
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