चालो उण देश में रे जोगिया, जहाँ नहीं मजहब नहीं पन्थ॥टेर॥

चार वेद षट शास्त्र नहीं रे जोगिया, नहीं धरम नहीं ग्रन्थ।

अल्ला राम दोनों नहीं रे जोगिया, नहीं स्वर्ग जिन्नत॥

ना वैकुण्ठ ना बहिश्त है रे जोगिया, नर्क दोजख ना कहन्त।

ना कोई पंडित काजी मुल्ला रे जोगिया, ना कोई संत महन्त॥

जीव ब्रह्म दोनों नहीं रे जोगिया, जहाँ है सबको अनंत।

रति पुरान कुरान नहीं रे जोगिया, सबसे अलग रहन्त॥

देवनाथ गुरु गह्यो रे जोगिया, जब ये बात लखन्त।

मानसिंह आनन्द सदा रे जोगिया, अपने में आप बसन्त॥

स्रोत
  • पोथी : मान पद्य संग्रह ,
  • सिरजक : राजा मानसिंह ,
  • संपादक : रामगोपाल मोहता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : 6
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