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आप रूप आवड़ा, छंद नाराच, संतोष गढ़वी, डिंगल दरबार, अंजस महोत्सव, जोधपुर

आप रूप आवड़ा, छंद नाराच, संतोष गढ़वी, डिंगल दरबार, अंजस महोत्सव, जोधपुर

विवरण

आप रूप आवड़ा: 

 ।। छन्द- अड़ल ।।

राम महेश गुणेश ब्रहमा, तपे ताप जपे जगदम्बा ! 

सांमत भांजया शुंभ निशुंभा औ आवड़ अवतरी अम्बा !!  

             ।। छन्द-नाराच ।।

अम्बा ईच्छा अलख की झलक दुख झाळणे ।

मांमट देव के ऊभट प्रेह प्रगटी पाळणे । 

सप्त बैन सुख चैन भैरू लेन भावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!१!!

 

तुंही भगत तारणी ऊबारणीलसुरां असी। 

जणीह मात चारणी जगत में तेरे जसी । 

सकत को संसार करत नाकड़ा नमावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!२!!

 

वड़ां गिरां सुवम्बरा सरांतरां रमे सही। 

धमंक पांव घुघरां ठमंक नेवरां ठही । 

चमंक शीश चम्मरां धमंक दीप धुपड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!३!! 

 

चेलक्क लक्क नेस चक्क झक जुंनी जाळकी। 

मेलां मनख के मनख के प्रीत पाळकी।

 खम्मा खम्मा करे खलक रखवाळ रंकड़ा । 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!४!!

 

देवी प्रवेश सिन्ध देश नेसगढ नांनणे। 

कणती क्लेश कुशळेश वांणियो आंणे भणे।

मारे मलेच्छ तैस मैस ते किया तड़ा खड़ा

 भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!५!!

 

 सजेह शिव सेवरो बजेह बुढी बाळका।

ध्रुजेह  शत्रु धाक सुं तजेह मरद तालका । 

ग्रजेह सिंह सुं गुमान खान खुन खावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!६!!

 

 काटे कटक्क घातकी प्रसद्ध मात प्रातही ।

 रमत के निरत भ्रात सप्त बैन साथही । 

जीमात भात तात जात थाळ भात थावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!७!!

 

हमाक लोक हाक बाक मेहरखे नांमने। 

चलो चलो चलो हलो चलक्क शेरां हुंक सांमने। 

भुखी भच्चक लेह भ्रख तें महंक रातड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!८!!

 

शोभा अग्यात द्वीप सात खाखरां रथां खमे। 

धमां धमां धरत पांव घुघरां घमां घमे। 

समां अमां समांन सेवी सुंमरां सरापड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!९!!

 

साते विचार सार धार मीर मार मंगियुं । 

करे ललकार पातसार मीर मार मंगियुं ।

पिधो हजार कौस पार हाक मार हाकड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!१०!!

 

चढ़्ढते   धनुष चाड़ तोड़ मंड टुकड़ा ।

मारया प्रचण्ड ज्युं चामंड चंड मंड चुकड़ा।

सिधाय आय खंड शुद्ध माड़ राय मावड़ा । 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!११!!

 

दटाक खाग दोट दे झटाक शीश झोटरी । 

वटाक ल्याई भाखलो कटाक आग कोटरी । 

रटाक रत हो त्रपत सेलावत सावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! १२!!

 

तणोट विझणोट तुं दुर्गेश कोट लुद्रवे । 

गिटयो घंटाळ गंठीपाळ आळ नाळ ऊद्रवे । 

भेटयो भुपाळ भाद्रीये रूद्राळ देग राचड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! १३!! 

 

पताळ मेण होत पेण डेण भ्रात डसियुं । 

बोलत वैण सात बैन नैण नुर नसियुं । 

रोकत गेण बीज रैण लेण जात लाभड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!१४!!

 

अमरत काज खोड़ियार मोकली ऊदध में। 

अरक्क आय ठांभीयो जुड़े धरक जुद्ध में। 

सोजे भुगोल पौर सोळ लाई अमृत लाभड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! १५!!

 

आरोग भ्रात अमियात आई नाथ ऊच्चरे । 

हुओ हुल्लास मुख हास सांस लाश संचरे।

रिवी प्रकाश मेण राश सप्तताश सावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!१६!!

 

देवी दातार दरबार चमंतकार चौगणे । 

तपोबळी विभुतियां आहुतियां आरोगणे । 

त्रोभोगणे घणे हो त्रास जोगणे जोहारड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!१७!!

 

झिले त्रिशुल छत्रझुल शत्रु मुळ सारणी । 

प्रगट चित्र झाल पुल चोल भाल चारणी । 

चढे ल्काळ बोल चाल रूद्र ख्याल राचड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! १८!!

 

ओपे त्रपंक टोप अंग मेघ छुरंग मनियुं । 

मणी वडाळ मुगट माळ नखत्राळ नमियुं ।

खड़ग ढाल खुफराळ धज्ज लाल धावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!१९!!

 

भुजा विशाल विकराळ काळ रूप काळका। 

संभाळ ढाल सौवनी मुण्डाळ रूढ माळका। 

वडाल सिंह साज वेग तेग झाल तावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! २०!!

 

कवच हो कनक रा माणक हिर मंजरी । 

झिगां मगां नगां जड़ित गोरे हाथ गुंजरी । 

लुद्रास मुद्रा लुम्बरीश झुंबरी लड़ां झड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!२१!!

 

सुह राग सिन्धुवो बणेह बंध बगतरां ।

हणैह घाव बौध हुंण रेल छेल रतरां

कसकदार ले कटार की फौज की झड़ा पड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! २२!!

 

हाले हलक्क वीर हाक डाक डक्क डेरवां । 

जुड़े जुड़क्क जुधड़क्क भुभड़क्क भैरवां । 

कंठीर पे चड़े कड़क्क धोम चक्र धावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! २३!!

 

हलन्त बाग होफरेश नाग सेस नमियं । 

नमाय देश के नरेश रास रैस रमियुं । 

सिंहां सुरेश के हमेश दुत भूत दाबड़ा । 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! २४!!

 

दाढी सफेद शौभ दैत कान श्वेत कुंडळा । 

सफेद मुंछ शौभियंत्र मक्र कीध मंडळा । 

फाबे सफेद शीश फुल जांण मौतीयां जड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! २५!!

 

चाड़े मृदंग झींझ चंग राग रंग रूपका। 

थपंग थांन थाथरंग ऊछरंग अनुपका । 

शिला तरंग बैठ संग ज्युं पतंग जावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!२६!!

 

मंडांण कन्द्रां ईन्द्र मन्द्र आस्थान ऊजळे। 

पाखांण पाटुपांण की प्रतिमा सात पुतळे । 

रावळ सिद्ध देवराज थांनड़ा थपावड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!२७!! 

 

रंगे सिन्दुर सोळ रंग आप रूप ऊपरां । 

सारंग शंख चक्र सुं चित्रंग चाप चुप । 

हवा तरंग तीर हाथ वीर साथ वंकड़ा । 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!२८!!

 

सातम मुकलातरी जगत मात जातरी । 

पुजा संज्या प्रभात री मनात जात मातरी । 

बजात भैर नौबतां घुरावतां जर ढंगड़ा । 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! २९ !!

 

आई दैठाळ आग रूप नाग रूप नागणी। 

पालम रूप पंखणी सम्मळी शौभा घणी । 

राजेश्वरी वाघेश्वरी छछुन्दरी थड़ा चड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! ३०!!

 

दिपंत नाम डुंगरेच के जपे कपाट का । 

तपे वैराट रूप तुंही थपे पाट थाटका

 तुंहीज तुं जठे तठे गढां मढां अर गांमड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !!३१!!

 

सती तुंही तुंही सिया अनसुईया आराधका । 

रूकमणी तुंहीज बणी तुंहीज बणी राधका । 

अम्बा तुंही अनाद आद तुंही राय त्रेमड़ा। 

भज्यां निशुंभ शुंभ भूप आप रूप आवड़ा !! ३२!!

          || कळश छप्पय ।।

आवड़ ले अवतार वृद्ध वंश वेल वंधारण । 

साचांरी सुरराय सकोदन काज सुधारण। 

पग पग परचा पुर दिया ते अन्नदाता। 

देवी हुं निरदोष मुझ मेहर कर माता । 

दुख मेटे ने सुख दयो जगत पतीजे जावड़ा। 

सांभळे साद मोटी सकत ओपर कीजे आवड़ा !!१!

 

जये "मेहो" कर जोड़ अरज सुण अम्बा आई । 

सहायक संत सहाय साते बहन सचाई। 

क्रोक्रो धनकार करे कुण होड कदाई। 

बीस हत्थी खड्ग वार असुरां ऊपर ऊठाई। 

पी गई समुद्र मोटां पखां चखां लाल रंग चाड़वे। 

मांमड़ घर जलमी मुद्दे माह बड़ापण माड़वे !!२!!

~ कवि मेहाजी

(प्रेषित: मीठाखां मीर डभाल)