महिपत मच्छ अवतार, संखासुर संतापियो।

जन्म हुवौ तिण वार, जल में जाय बुहावियो।

जल में जाय बुहावियो ने, माता भई सधीर।

संखावती सहेल्या साथै, गई जल भर तीर।

दीठो मच्छ रमंतो रेती, काढ लियो कर धार।

सूक्ष्म रूप धर्यो करुणावत, महिपत मच्छ अवतार॥

स्रोत
  • पोथी : जांभोजी विष्णोई संप्रदाय और साहित्य ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी ,
  • प्रकाशक : सत साहित्य प्रकाशन, कलकत्ता ,
  • संस्करण : प्रथम
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