सुमत समापो सारदा, आपो उकती आप।

कमधां जस वरणन करूं, तूझ महर परताप॥

समरूं गणपत सरसती, पांण जोड़ लग पाय।

गाऊं हूं सळखाणियां, विध-विध सुजस बणाय॥

सुणी जिती सारी कहूं, लहूं झूठ लिगार।

माल जैत जगमाल रौ, वीरम जुद्ध विचार॥

स्रोत
  • पोथी : वीरवांण ,
  • सिरजक : बादर ढाढी ,
  • संपादक : भूरसिंह राठौड़ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय
जुड़्योड़ा विसै