दूहौ

उमया नंदन अंग अकळ, ज्ञाता गुणै गरीर।
पार अपार प्रणम्मतां, करिहौ बावन वीर॥

बावन्न बहुत्ता वीर वरीत्ता, धूरत धत्ता विपरीता।
मनसुख सुसंता, गीह गीहंता, वावरियंता ढळकंता।
लहुआ लहकंता वेढ विगंता, परिया आरति कपंता।
ए पार अनंता उमया पुत्ता, खेचरंवता खेलंता॥

तवा हडलत्ता फत्तर फरता, छव छवता छळ छित्ता।
पलिहार पइता, लख मंडेता, लछ छिलियंता क्रांता।
आहूत आक्रइंता अकळ अधइंता ,जरा अजीता जयवंया।
ए पार अनंता उमया पुत्ता, खेतरवंता खेलंता॥

सबळा आवंता लंक दहत्ता, हणव दयत्ता हणवंता।
मूली अमरिता मुकहवेता, कापतरिया अणंता।
मध्यावंता खत्रीन तेता, पिरिया आरत कापंता।
ए पार अनंता उमया पुत्ता, खेचरवंता खेलंता॥

मधा डबरंता छत्र धरंता, रध वढंता उरळंता।
चउसठि सकत्ता मुहर हुवंता, चमर ढळंता चालंता।
त्रड त्रड वित्ता माणिक दत्ता, वेड वियंता धवतंता।
ए पार अनंता उमया पुत्ता, खेचरवंता खेलंता॥

तन जोग तडंता सीलसवंता, अजर जरंता अवधूता।
समसांण वसंता नाद नरंता, ध्यान धरंता सुललंता।
ब्रह्म वार विरत्ता न्याय निरत्ता, ताप करंता तापंता।
ए पार अनंता उमया पुत्ता, खेचरवंता खेलंता॥

अवदिसि दीयंता लग लहंता, अवकणंता कणणंता।
घाटा अवघटता वेट चिडंता, तोई सागर तागंता।
मईया मंडलंता गयण धवंता, माग मुगंता मालंता।
ए पार अनंता उमया पुत्ता, खेचरवंता खेलंता॥

नटवा चेटकता निव्वेड़ंता, दोस दीयंता दाखंता।
सबदे सुहणंता सयण सुकेता, वळे विगंता वयणेता।
गूढा रस गत्ता गाह गहीता, अमृतवंता मुखवंता।
ए पार अनंता उमया पुत्ता, खेचरवंता खेलतां॥

मसीत वसेता त्रुया तरीता, पीरांणां धई मलपंता।
निवाज नवंता बांग दीयंता, पूठ वळंता पावंता।
इलला इललंता भाख विलंता, गालाहंता गलंता।
ए पार अनंता उमया पुत्ता, खेचरवंता खेलंता॥

कळस

खेलंता खत्रतरि, रमण रमताळी वर।
ध्यान ग्यान बहुगर, नाद गुण वेद समंछर।

श्रवजांण सुंदयर, धत्र धूरत विधावर।
वसइ वीर गिरि विमर, आप अवधूत अगोचर।
बहु गुण लियण लाठी भमर, अकल तनु अपरमपर।
कवि मेह पयंपै जोड़ कर, नामा नाध भमरव नर॥

स्रोत
  • पोथी : मेहा वीठू काव्य-संचै ,
  • सिरजक : मेहा बीठू ,
  • संपादक : गिरधर दान रतनू ‘दासोड़ी’ ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै