दोहा

लखमंण सूंना झुंपड़ा, सीता चोर पइट्ठ।
वलि धंण दीठौ नाह विंण, धंण विंण नाह म दिट्ठ॥

वदै रांम तरि तरि विचर, जो यंम लाछि अजीत।
आंपे लखमंण ईखस्यां, सीयाळै मझि सीत॥

तरि तरि पेख म कलपतर, सरि सरि हंस मं सोजि।
कुसळ न लखमंण जांनकि, नड़ि नड़ि बहूड़ि न खोजि॥

भंणि भंणि सीत सुभांम, वंनि वंनि खिण खिण विचरतां।
व्यापै रांम विरांम, जळि तौछै थळि मीन जिम॥

जीव पराक्रित जेम, किसौ सोक राघव करौ।
अखिल भुवन पति ऐम, कांय कळपौ लखमंण कहै॥
स्रोत
  • पोथी : राम रासौ ,
  • सिरजक : माधवदास दधवाड़िया ,
  • संपादक : शुभकरण देवल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली। ,
  • संस्करण : द्वितीय
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