दुहा

रांम लखिण सत्रघन भरथ, ऐ वर तरंणि अनूप।
मंडवी सीता उरमळा, सतकृत्या सारूप॥

चढिया तोरण रांमचंद, सुर जांनी दसरथ्थ।
सासत्र मंडल कोड स्रवि, अखित मुकत अरथ्य॥

चौंरी पाट पधारिया, वर वेहड़ा सुविंद।
सौहे दुलह सेहूरा, उडियण मधि जिम इंद॥

वेदी रतन सुआय वंस, अरि जन वेह उदीस। 
पहुप वरिखा कीध पुड़ि, सुरे रघुपति सीस॥

कुंवरी उभै कुसधज री, सत्रघन भरथ समध्ध।
सधू जनक सिर हरसि वर, लखमण राघव लध्ध॥

वेदी मंगल साखि विप्र, सुवर तरणि ऐक सथ्थि।
बाहां जिगि दीन्ही बिहूं, हथळेवा मिसी हथ्थि॥

त्रिण्हि फेरा लीधा तरणि, आगै करि रघुयंद।
साळे दीन्हा सेहूरा, वर सिखराळा वंद॥

चौथे मंगळ रांमचंदि, सुर तरणि श्री रंगि।
आगै क्रमि आंणी अनंत, सीता वांमें सु अंगि॥

सीता राम पायौ सु वर, मांडवी भरथ मंन। 
लखमंण भरता उरमला, स्रुतक्रित्या सत्रघंन॥

पुत्र सजोड़ा परणिया, चौंरी चांद चियारि।
दीये वधाई, दसरथि, अरथ गरथ ऊवारि॥

वसिष्ट कहै वंसावली, राज ख्याति दसरथ्थ।
ले ब्रह्मा हू राम लगि, सुणै सकल जिग सथ्य॥
स्रोत
  • पोथी : राम रासौ ,
  • सिरजक : माधवदास दधवाड़िया ,
  • संपादक : शुभकरण देवल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली। ,
  • संस्करण : द्वितीय
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