दूहा

गवरी नंदन जगवंदन प्रणाम संकरी आद।
विद्वानं हरी मंगळकारी आरी आद अनाद॥

सुमत समपौ संकरी गवरी पुत्र गणेस।
बारहमासो वरनवूं अबचळ अनो नरेस॥

अथ
बारह मासा
चैत्र


सारिखा निस दिन चैत्र मासे........सी गयौ।
बनराइ फूली भंमर गुंजे कोमलता थयौ॥
गणगौर पूजै गीत मंगळ घण अधिक उछव करै।
राठौड़ राव अनोप तिण रूत कमध महले सुख करै॥ 

बैसाख


वैसाख मास वसन्त विलसै पुहप फळ पत्रावळी।
बहु भांत सेज बणाय फूलां नार नर मांणे रळी॥
मकरंद सरस गुलाब परमळ भ्रमर भोगी दिन भरे।
राठोड़ राव अनोप तिण रूत कमध महले सुख करै॥

जेठ


लागंत जेठे लूअ खळके वार निमख न वीसरे।
रित प्रबळ ग्रीष्म तपे दिनकर निसा लघु दिन विस्तरे॥
बह भांत मेवा दाख पाचे अंबु माल्हा उतरे।
राठोड़ राव अनोप तिण रूत कमध महलां सुख करै॥

आषाढ़


आषाढ़ आयो ऊनमे घण प्रबळ लू पाछी पड़ी।
दिन रैण आळस ऊंघ अधिकी चमकवा बीजळी चड़ी॥
पसु पंख मानव मेघ चाहे पवन पबण फरहरे।
राठोड़ राव अनोप तिण रूत कमध महलां सुख करै॥

सावण


प्रगटीयो सांवण मास परबळ बीज चमके बादळे।
झड़ मचे वरसे अंब झरहर खाळ चुंह दिस खळहळे॥
तिह वार तरुवर फले धरा नीली धन चरे।
राठोड़ राव अनोप तिण रूत कमध महलां सुख करै॥

भाद्रवा


भाद्रवे मांहे मेघ भेळा उळट बरसण आवीया।
धूम रळ धारा घरा ऊपर महि मंडळ जळमय कीया॥
गिरवरे सरवर भरे बोले मोर अंबर घरहरे।
राठोड़ राव अनोप तिण रूत कमध महलां सुख करै॥

आसोज


आसोज मासे मचे अतिघण वार सरता विमळता।
वेलीयां छाया अधिक तरवर चन्द्र है निकळंकता॥
नवरात पूजा विजै दसमी सीप उर मोती धरे।
राठोड़ राव अनोप तिण रूत कमध महले सुख करै

कातिग

कातिग मासे गयण निर्मळ मेघ दामिण चलीया।
विकसंत वारिज सरस सरवर हेम चरणे हलीया॥
प्रवड़ पूजे दीपमाळा भांग दखण पग धरे।
राठोड़ राव अनोप तिण रूत कमध महलां सुख करै॥

मिगसर

मागसिर मासे सीत चमके कंत चाहे कामिनी।
वड़ हुवे धूंध अंबर हुवे भिंभळ जामिनी॥
तो सील हासल भरे रईयत उभै अंन धंन उघरे।
राठोड़ राव अनोप तिण रूत कमध महलां सुख करै॥

पोष

सी पड़े दारुण पोष मासे पवन उतर फरहरे।
विरहणी वंन.........नव गऊ निरधन थरहरे॥
तरू झड़ पलव भ्रमर सकुचे नाग निमख न नीसरे।
राठोड़ राव अनोप निण रूत कमध महलां सुख करै॥

माघ

मोरीया अंब बसंत रित प्रबळसी पाळो पड़े।
वळि रैण गळतां लहर बाजे खेंग पंथी निठ खड़े॥
न सुहाय नीर अंग न वलभ अयन उतर दिस धरे।
राठोड़ राव अनोप तिण रूत कमध महले सुख करै॥

फागण


आवीयो फागण मास इण विध कामिनी उछव करे।
नर नार खेले फाग होळी रंग पिचकारी भरे॥
दखणाध छंडे घिरे दिनकर चाव उत्तर चित धरे।
राठोड़ राव अनोप तिण रूत कमध महलां सुख करै॥

वरणीयो ब्राहे मास विध विध प्रबळ राव अनूप रे।
सुभ संवत सतरे सै चमाळे मास जेठ संम धरे॥
पष धवळ पूनिम वार मंगळ जेठ रिखवर तेज रे।
कर जोड़ कासी कहे कवीयण अनो दुख दारिद हरै॥

स्रोत
  • पोथी : छत्रपता रासौ ,
  • सिरजक : काशी छंगाणी ,
  • संपादक : नारायणसिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर
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