दोहा

आदि अजुध्या धाम है, रामचंद्र अवतार।
लंकापति रावण हन्यो, लई न छिनक अवार॥

छंद पद्धरी 

लगी न छिनक येको अवार।
दस आठ पदम पतिसेन लार॥
उमराव चरण अंगद धीर।
सुग्रीव जाम हणवंत वीर॥
कीनों विहंड सों दसौं सीस।
लीने उपारि सो भुजा बीस॥
कर जोर भभीछन गहिव वोट।
बकसेस लंक सो वनी कोट॥
ऐसेस होय रघुनाथ पाट।
थपेस लंक बहुर्यों स ठाठ॥
राकसां देव वरने विरुध।
जीतये राम रघुवंस युध॥

दोहा

जीते राजा राम रण, आये नगर निवास।
ता पीछे दसरथ-सुत, दिये सीत बनवास॥

चौपाई

राम राज आग्या यौं कीनी। ता पहुचावन लछमन दीनी॥
गर्भवंति सीता संग होई। ता तजि बंधि गए वन जोई॥

दोहा

अति व्याकुल सीता सती, परी महा बन ठाम।
ता बन यक तपसी तपत, बालमीक रिष नाम॥

छप्पय

साकुल हिरनन सैल कीन रिष बालमीक वनि।
लखि कमला द्रग जान आन पूछीस वात जनि।
को पुत्री को तात कौंन तेरे पति कहियत।
वचन बोल मुख जोय होय सो मोहि वतैयत।
बोलीस सीत सुनि हो पीता, जनक तात पहचानिये।
सुत चार राज दसरथ के, तीन दीरव पति जानिये॥

दोहा

सुनत वचन रिष सीत के, संग लै गये तास।
दई राखि रिषनीन संग, वन घन ग्रहै निवास॥

चौपाई

सीता रहत सवन संग सोई। उपजे पुत्र जुगल जग जोई।
लव कुस नाम रहै वन भ्राता। बालमीक गुरु विद्यादाता॥

दोहा

जो विद्या जितनी पढी़, वालमीक गुरु कीन।
निपुन होय गुण गण जिते, जथा जोग परवीन॥

दोहा

वीते वन द्वादश वरष, सीता रहत सुठाम।
आई फुरमाई अवधि, जब रिष बूझे राम॥

चौपाई

किसी होय सीता हित सोधो। रिषि बोले विधि या विधि बोधो।
छोड़ो सावकरण सजि सोई। सुत तुमरो पकरैगो सोई॥

दोहा

सुनत राम रिष के वचन, सावकरण सज कीन।
गयो बाज वनवास मै, ते लव कर गह कीन॥

दोहा

पीछै पिलिये रामदल, अरु संग लछमण भ्रात।
किये तास वनवास मै, समै जुध सुत तात॥

दोहा

सुत सीता लै आवियै, राज अजोध्या राम।
ता पीछे अब वरन हौं, कूरम कुल के ठांम॥

स्रोत
  • पोथी : प्रताप-रासो ,
  • सिरजक : जाचीक जीवण ,
  • संपादक : मोतीलाल गुप्त ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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