॥ दुहा॥
नाद हुवै घण नभ्भ में, गजब होत अति गाज।
उमटी है उतराद में, अजब कळायण आज॥‌

घूमर बादळ घालर्या, चपल बजावत चंग।
पून थाळ री ताळ पर, अवनी थिरकत अंग॥

अवनी थिरकत अंग पर, नभ मन उपजे नेह।
प्रेम जतावण ओ करे, घोळां जिम घण मेह॥

॥ छंद रेंणकी॥ 

सन सनन सनन समीरा घण बाजत, खड़ड़ खड़ड़ पतियां खड़के।
हड़ हड़ड़ हड़ड़ हड़ तड़कत बिजुळी, कड़ड़ कड़ड़ चढती कड़के।
थर थरर थरर कर धर नभ थिरकत, पळकत आभ छटा हरणी।
गर गरज गरज बरसत घन इन्दर, मधर मधर मुळके धरणी॥
जी मधर मधर मुळके धरणी॥

घण घनन घनन घण गरजत अंबर, तड़ड़ तड़ड़ तरुवर तड़के। 
दड़ दड़ड़ दड़ड़ दड़बड़ डर कुंजर, थड़ड़ थड़ड़ धरणी धड़के।
फर फरर फरर पर खेचर फड़कत, टरर टरर दादुर तरणी।
गर गरज गरज बरसत घन इन्दर, मधर मधर मुळके धरणी॥
जी मधर मधर मुळके धरणी॥

सर सरर सरर सऴफत रज विषधर, नचत नचत मयुरा महुके।
टर टिटर टिटर टिटहरया गावत, चहक चहक चातक चहुके।
कर करर करर कर किलकत सारस, मधुर कूक कोयल करणी।
गर गरज गरज बरसत घन इन्दर, मधर मधर मुळके धरणी॥
जी मधर मधर मुळके धरणी॥

छल छलल छलल सरवर जळ छळकत, तर तर जळचर मीन चरे।
हर हरख हरख हर हरखत करषा, पच पच मेंणत रगत झरे।
झर झरर झरर झर झरकत अम्बर, सधर सधर ढळती तरणी।
गर गरज गरज बरसत घन इन्दर, मधर मधर मुळके धरणी॥
जी मधर मधर मुळके धरणी॥

खर खरर खरर हळ चीरत धरती, अड़ड अड़ड़ वसु बीज रळे।
गड़ गड़ड़ गड़ड़ गुंगल गुड़कावत, धमक ममोलिय आज ढळे।
ठम ठमक ठमक चलती भतवारण, माथ भात हथ दइ भरणी।
गर गरज गरज बरसत घन इन्दर, मधर मधर मुळके धरणी॥
जी मधर मधर मुळके धरणी॥

॥ छप्पय॥
बरस मेघ अति गज्ज, अब कज्ज करण किरसान‌।
बरस मेघ अति गज्ज, इण रज्ज उगावण धान।
बरस मेघ अति गज्ज, इब लज्ज रखावण लोक। 
बरस मेघ अति गज्ज, धर सज्ज पुरावण चौक।
सज्ज धज्ज कळायण उमटी, रज्ज रज्ज उडिके रेत।
अज मझ्झ अषाढे माह में, गज्ज गज्ज बरसो खेत॥

स्रोत
  • सिरजक : सत्येन्द्र सिंह चारण झोरड़ा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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