॥दूहा॥

कणयाचल जगि जाणीइ, ठाम तणउं जात्रालि। 
तहीं लगइ जगि जालहुर, जण जंपइ इणि कालि॥ 

विषम दुर्ग सुणीइ घणा, इसिउ नही आसेर। 
जिसउ जालहुर जाणीइ, तिसउ नहीं ग्वालेर॥

चित्रकूट तिसउ नहीं, तिसु नहीं चांपानेर।
जिसउ जालहुर जाणीइ, तिसउ नहीं भांभेर॥

मांडवगढ तिसउ नहीं, तिसउ नहीं सालेर।
जिसउ जालहुर जाणीइ, तिसउ नहीं मूलेर॥

॥चौपाई॥
वसइ नगर गिरि ऊपरि घणउं, किसूं वर्णवउं तलहटी तणउं।
वेद पुराण शास्त्र अभ्यसइ, इस्या विप्र तिणि नयरी वसइ॥

विद्या वाद विनोद अपार, विनय विवेक लहइ सुविचार।
राजवंश वसइ छत्रीस, छिन्नू गुण लक्षण बत्रीस॥

चाहूआण राउ तिणि ठाइ, अबला विप्र मानीइ गाइ। 
छत्रीसइ दंडायुध धरइ, हीण कर्म को नवि आचरइ॥

च्यारि वर्ण उत्तम जाणीया, विवहारीया वसइ वाणीया। 
वुहरइ वीकइ चालइ न्याय, देसाउरि करइ विवसाय॥

जलवट थलवट चिहुं दिसि तणी, वस्त विदेसी आवइ घणी। 
वीसा दसा विगति विस्तरी, एक श्रावक एक माहेसरी॥

फडीया दोसी नइ जवहरी, नामि नेस्ती कामइ करी। 
विवध वस्तु हाटे पामीइ, छत्रीसइ किरीयाणां लीइ॥

नगरि मांडवी वारू पीठ, आछी खेरा चोल मजीठ।
पाडसूत्र पटूआ सालवी, वुहरइ वस्त अणावइ नवी॥

कंसारा नट नाणुटीआ, घडिया घाट वेचइ लोहटीआ। 
कागल कापड नइ हथीयार, साथि सुदागर तेजी सार॥

तल्यां सूखडां तोलइ मान, नागरवेलि अणीवेलि अणीआलां पान। 
इणि परि वस्त विकाइ बहू, जे जोईइ ते जोईइ ते लाभइ सहू॥

घडी घडी घडीयाले सान, राति दिवसनुं लाभइ मान।
चहुटां चउक चउतरां घणां, ठामि ठामि मांडइ पेखणां॥

सेरी सांथ मोकली वाट, नगर मांहि छोह पंकित हाट।
घांची मोची सूई सूतार, वसइ नगर मांहि वर्ण अढार॥

गांछा छीपा नइ तेरमा, विवसाईया वसइ नगरमां। 
आपापणि काजि सहू मिलइ, चहुटइ हईइ हईउं दलइ॥

आसापुरी आदि योगिनी, देव चतुर्मुख गणपति अनी। 
कान्ह स्वामि गिरूआ प्रासाद, शिखर तडोवडि लागु वाद॥

आठ पुहर नित पूजा करइ, ईडे ध्वजावस्त्र फरहरइ। 
वलतइ वारि हुइ नितु जात्र, नाटक नृत्य नचावइ पात्र॥

पूरइ प्रत्या ध्याइ लोक, भूष दूष नइ टालइ शोक।
जोइ जिणालां ठाम विसाल, वसही देहरां नइ पोसाल॥

गढ ऊपरि जलठाम विसाल, झालर वावि कुंड जावालि। 
वारू वावि मांडही तणी, नटरष वावि अति सोहामणई॥

राणी तणी वावि गंभीर, नटरष वावि निरमल नीर। 
सोभित बुर्ज बुर्ज काकरउ, नदी तरूअर ऊमाहरउ॥

साल्हा चउकी करहडी जाणि, कान्हमेर रूयडउ वखाणि।
साल्हा वाडी तरूअर चंग, राय तणउ छइ मंडप रंग॥

जीणइ वसइ जालउरउ कान्ह, राजरिद्धि छइ इंद्र समान।
रामपोलि अति रुलीआमणी, त्रिणइ पोलि तलहटी तणी॥

पोलि फूटरी पाटण तणी, चीत्रुडी नइ ढीली तणी। 
बारी पोलि भलेरउ भाव, कूंअर तणउं तलहटी तलाव॥

सूंदर नाम तलावह जेउ, भोलेलाव कचोली बेउ। 
पाणी तणी पर्व अपार, सहू को मांडइ सत्रूकार॥

जे पहिरइ मुद्रा कांथडी, आवइ जती जोगी कापडी। 
देसंतरि पंखीया भाट, अन्न अवारी पूछइ वाट॥

तरूअर छांह परस चउवटे, राउत रमइ नितु जूवटे।
नगर नायका रूप अपार, नितु नितु करइ नवा सिणगार॥

तास तणा मंदिरि वीसमइ, भोगी पुरुष तेहस्यूं रमइ। 
वावि सरोवर वाडी कूआ, नगर निवेसि ढलइ ढीकूआ॥

गढ गिरूउ जिसउ कैलास, पुण्यवंतनउ ऊपरि वास। 
जिसउ त्रिकूट टांकणे घडिउ, सपतधात कोसीसे जडिउ॥

घणी फारकी विसमा मार, जीणइ ठामि रहइ झूझार। 
झूझबाणनी समदा वली, विसमा वार वहइ ढींकुली॥

गोला यंत्र मगरवी तणा, आगइ गढ ऊपरि छइ घणा।
ऊपरि अन्न तणा कोठार, व्यापारीया न जाणूं पार॥

माणिक मोती सोनां सार, गढ मांहि गरथ भरिया भंडार।
टांकां वावि भरयां घी तेल, वरस लाख पुहुचइ दीवेल॥

जूनां सालणां सूकां खड, ईधण भणी घणां लांकड।
जालहुर गढ विसमउ घणउं, चाहूआण रायनूं बइसणउं॥

स्रोत
  • पोथी : कान्हड़दे प्रबन्ध ,
  • सिरजक : पद्मनाभ ,
  • संपादक : कान्तिलाल बलदेवराम व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : second
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