प्रीतिके उपायनसौं भांति भांति भायनसौं,

सहज सुभायनके भायनकौं लै रहे।

निपट प्रगट उघटत घटत नट,

सु लटै सुघट उछटनि छबि छै रहे।

बृंदाबनचंदके दरस पर बारबार,

जीतिबेके जंत्रनसे जतन जितै रहे।

खंजन पटंतर लागत निरंतर,

सो नैनां पट-अंतर धनंतरसे व्है रहे॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • सिरजक : बुध्दसिंह हाड़ा ,
  • संपादक : श्रीरामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : first
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