चन्द्रकों चकोर ज्यौं दिवाकरकों चक्रवाक,

जैसे मघवानकों कलापी वरजोरी हैं।

जोगी जोग-ध्यानकों जुराफा ज्यों जुरानकों,

महोदधिके थानकों मराल मति मोरी है।

री बलि चंदमुखी तेरे मुखचंद पर,

वृंदांवनचंदकी लगनि यों निहोरी है।

चाय वरजोरी यन चातकन लोचननि,

चातकतें चोरी कैंधो चातकन चोरी है॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • सिरजक : बुध्दसिंह हाड़ा ,
  • संपादक : श्रीरामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : first
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