जुगां जूनौ मिनख

पीढ़ियां सू खपतौ-पचतो

हांफळतो-आफळतौ

नीठो नीठ पगां ऊभौ हुयौ

आपरी परकत री

की नींव सीव जोखियां

धर धीजै री धणियाप पाळी,

हाल बाकी ही

साबत चेतै सूं

छांगियां पांगरणी भाग री टाळी

मिनख सूमिनख री हेत पाळी,

इतरै में

सूझी उणनै उछांछळाई—

धरती माथै हालतां हालता

आपै बारै आयो

तो चांद रौ चांदो नेड़ौ ही लखायो

झट, अेक पग उण माथे मेल दियौ

बिचारियां बिना कै गेलो

किसै गांव जावै?

हमें चीरोजे है उणरो बेड़ौ

दो नखतां तणाव री तांण सू

चांद छेटौ खावै

ज्यू आंख्यां रा तारा

बडा होता जावै

नीचै जोवै तौ

सोर रा भाखर सिळगता लखावै।

पैला धीरायत धरती

मोड़ा बेगा

पूंछ लेती पूत रा आंसू

हमें तारा तमासौ देखै।

नै समदर खिलका करै।

स्रोत
  • पोथी : मिनख नै समझावणौ दोरौ है ,
  • सिरजक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : पंचशील प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै