झांको बाईसा लाडो तोरण पधार्‌यो।

बांध्यां पागड़ी जरी को जामो ऊपर छत्तर धार्‌यो॥

कांधे मोळ्यो, कमर कटारी, मुखड़े पानड़ो चबार्‌यो।

हुक्का फूलझड्यां फटाका सूं धरती अम्बर गुंजार्‌यो॥

राजा इन्दर नै लजातो बनड़ो घोडी नै नचार्‌यो।

उगतो भोळो सूरज संझ्या बाईसा नै लेबा आर्‌यो॥

ढोली मालोड़ा लगावै नोबत बाजा धमकावै।

साथीड़ा मर्‌दना का मार्‌या उजळी बत्तीस्यां चमकावै॥

मन मं भावै मूण्ड हलावै छोर्‌यां नैणा सूं घुरकावै।

स्याणा सैणा मं बतळावै मनड़े थोड़ो सो गम खावै॥

समदण सीगसो लगावै गंगा जमना जी अमगावै।

आधो काचो आधो पाको काजळ नैणा मं सरकावै॥

जीत्या जग नै जीत्या टोडरमल जी द्वारै तोरण मारै।

सासूजी प्यारी की जामण जगमग आरती उतारै॥

पास पड़ोसी की भायल्यां बनड़ी ने सोळह सणगारै।

चूड़ो सासरिया को भाभी नैणा काजळ बीन्दो सारै॥

ढुळक्या आंसूड़ा आंख्यां सूं घूंघट धीरां-धीरां जा’रे।

जोड़्यां गठजोड़ा जनमां-जनमां का चालै लारै-लारै॥

चारूं खूण्या चंवर्‌यां धरदी, बीचां मं मेंडो गड़वायो।

जामणजाई को हथळेवो बीरो बनड़ा सूं जुड़वावै॥

फेरा पड़ग्या कथा सुणाई पारवती नै शिव वर पायो।

कन्यादान कर्‌यो बाबल ने मंगळ पलंगाचार करायो॥

कोयल कूंक रही बागां की डोळो जनवासे पहुँचायो।

गुड़ मं मळ्या पतासा भर-भर मुट्ठा खूब तमोळ बंटायो॥

स्रोत
  • पोथी : आंगणा की तुळसी ,
  • सिरजक : किशन लाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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