थारो म्हारो बन्धाण

समझ में नीं आवै

बावळ्या

ईं लेखै कै म्हानै

नीं जोड़्या

जै थू खुस हो रह्यो छै

म्हनै अपणार,

थांरी पथवारियां मं यूँ हीं

नीं मंड्या मन मं मांडणा

म्हैं कर्‌या छा पाछला जनम सूं

थनै पाबा कै ताईं घणा जतन

दबाया छा चाकरी मं

भगवान का चरण

आँसूवां सूं धोया छा पगल्या

पियो छो चरणामृत घणो,

फेर भी तो देख

मिल्यौ तो सरी थूं

पण दूसरा को हो'र

तरस तो रहग्यो मन को मोर

थारा प्रेम का बादळा

अठी-उठी बरसग्या

फेर ईं जनम मं कर रैयी छूं

मनवार थां सूं मिलबा की

बेदरदी कान्हा सूं।

कर रही छूं

बरत, उपवास, पूजा

नहा रही छूं सावण

भूखी-प्यासी,

हाड़ जमाती ठंड मं

नोरता में पाणी पी पी'र करी छै

आराधना जोगणियां माई सूं

मंदिर-मंदिर, थान-थान

तीर्थ-तीर्थ कर रही छूं

धोक विनती,

उल्टो सांथ्यो मांड'र आई छूं

मन्दिर कै पाछै,

आगला जनम

म्हनैं दे दीजै हाथ ऊंको

दोनूं जोड़ा सूं आर

करेंगा सांथ्यो सुलटो,

अर कर देगा सवामणी

सात जनम कांईं

जनमां-जनमां तांई करूंगी

थारी चाकरी,

अबकै राख लै थू मन म्हारो

सम्भाळ'र

अतना करायां सूं तो

सात जमारा सफल हो जावै छै

एक बार में ईं

जनम मं भी मिल्या तो

फेर जनम लेगा धरती पर

थनैं पाबौ घणो कठिन छै

बावळा थू कांईं जाणै

तरसबो?

स्रोत
  • सिरजक : मंजू कुमारी मेघवाल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी