स्रिस्टी री सरूआत सूं
लैय नै आज तांई
वा, सगळा रा हीड़ा
करती आ रही है
उणरै हीड़ां रो
हिमाळो थरप गयो है
जिण रै पांण इण आज
मानखो समाज, इत्तो
आगै वदियो है,
प्रगति करी है।
समाज भलैई कित्तो हो
आगै बदियो व्है
इतिहास रै हर काळ खण्ड मांय
वा तो आपरै अस्तित्व खातर
इयूं’र इयूं आफळीजै है
उणरी जूण जातरा तो
मिनख री मर्जी री’ज हैठवाळी है
क्यूं कै, वा तो मिनख रो
आखरी उपनिवेष है।
राज भलै ई राम रो व्हो
कै रावण रो, उणरै सारू तो
सगळा सीरखा इज है
कणैई उणनै अगनी परीक्षा देणी पड़ै
तो कदैई भरी सभा मांय
जुआ रै दाव माथै बोली लागै
चवड़ै धाड़ै पल्लो खेंचीजै
जाणै वा किणी री सम्पति
वस्तु कै कोई चीज है
उणरो खुद रौ आपो के
कोई वजूद ही नी है।
उणनै, कणैई सती रै मिस जीवती बाळै,
तो कणैई जीवती नै छानै सीक
तंदूर मांय भट्टी में भूंज नाखै
पांच सितारी होटल मांय चवड़ै धाड़ै
गोळियां सूं वींद नाखै,
बीच सड़क रस्ता बैहती रै
मूंडा माथै अेसिड नाख’र
बदरूम करै अर दूजा भी कैई
रागसी नागा नाचा सूं वा
घणी रौंदीजै, तळीजै,
चींथीजै, सौसीजै, अर कूटीजै,
उणरी अदीठ, अलेख, अणगिण
हीड़ां री पीड़ां रो,
कोई छैह है नीं पार।
पण, नारी अब्बै उठ।
इयां जुल्मा अर अत्याचारां नै
कद तक सैहन करती?
उण! थारै आपै नै पैचाण
थारी शक्ति सूं हीड़ां रै हिमाळै
नै गाळर सामाजिक न्याय
अर समता री गंगा ला,
इण दुभांत नै मिटा’र
नूंवै समाज री रचना मांय जुतजा।
जद सामाजिक भेदभाव, अन्याय
अर हर तरह रै शोषण रा
खुर खोज जड़ा मूळ सूं मिट जावैला
हीड़ां रो हिमाळो पिघळ जावैला
अर तूं अेक ‘घौना’ रै खोळिया
सूं निकळ’र
मिनखा जूण माय आ जावैला
अर तूं अेक खुद मुखतियार
सुतंतर सगस बण जावैला।