पगल्या धोती रैण,

कामणी नाव पूजती पाणी...

धीरां उतर चांदणी राणी।

डूंगर नैं होठां सूं बांध्या

किरणां का अलगोजा,

अंधियारा अर उजियाळा में

माची खींचाताणी।

रैणां थारी बैणा,

कर घर कर बैठी सणगार छै।

हीरा जड़ी राखड़ी,

ईं को तारां जड़ियो हार छै।

महंदी माथा लच्छा ताणी

हाथी दांतां को चूड़ो।

नरखै नरखै सरमावै

दूरा सूं चन्दरमा बूढ़ो।

नखराळी या रात

बचावै नजर्यां खोटी काणी।

धीरां उतर चांदणी राणी॥

बैसाखां का बाड़ा

लहरां की गोद्यां या खेलै।

सूधी धारां काटै,

आगै पाछै की थपड़ां झेलै।

मनमचली या नाव,

जुड़ी लहरां की संगत ईं तोड़ै।

ईं तीरां सूं ऊं तीरां

ऊं तीरां सूं पाछी दोड़ै।

गळता ज्यूं गळबा लागै, ईं

पीछोला रो पाणी।

धीरां उतर चांदणी राणी॥

सूनावरणी मूं डो थारो

रूपावरणी काया छै।

सरवर की तीरां-तीरां,

रूपाळा पसब उगाया छै।

दरखत की झांकी सूं झांकै

बादळ्यां कै घूंघ’टै।

नजर्यां सूं झरती झर-झर-झर

चूनड़ बरणी छाया छै।

छानी मूनी सुर में बांधै

रागां जाणी जाणी।

धीरां उतर चांदणी राणी॥

स्रोत
  • पोथी : सरवर, सूरज अर संझ्या ,
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम अकादमी ,
  • संस्करण : Pratham
जुड़्योड़ा विसै