बड़ न्हं होवै

तो कण की छाया में बैठै

पंच?

पंचां कै तांई तो

छाया चाइजै।

म्हूं पंचां नै

परमेसर सूं बडो मानूं छूं,

पण जद जद

बड़ को रूंख दीखै छै

पंचां को मान

म्हारी आंख्यां में

घटज्या छै,

पंचां सूं बडो छै

बड़।

पंच,

भष्ट्यावड़ा हो सकै छै

म्हूं

बड़ की पूजा करूंगो

बरदास्त कर ल्यूंगो

डीलड़ा पै

ठौर ठौर

जड़ बणाता

बड़ का तांत्या

पेट को सारो पाणी

गटागट पी जाती

बड़ की जड़ां

हवेल्यां की नाईं

दळ पै दळ छाता

लीला-हर्या

मोटा-मोटा पान।

बड़

बद बद खावणो छै।

पंच

भष्ट्यावड़ो छै।

परमेसरो

कश्यो छै जी?

म्हूं न्याव तुड़ाऊगो।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : प्रेमजी प्रेम ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम